अंतरा भाग -1 अमरकांत (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए )
प्रश्न 1:सिद्धेश्वरी ने अपने बड़े बेटे रामचंद्र से मँझले बेटे मोहन के बारे में झूठ क्यों बोला?
उत्तर : घर की स्थिति सही नहीं चल रही थी। रामचंद्र की नौकरी छूट गई थी। उसी के पैसों से घर चल रहा था। ऐसे में जब थका-हारा रामचंद्र बाहर से आकर मोहन के बारे में पूछने लगा, तो सिद्धेश्वरी को झूठ बोलना पड़ा। वह रामचंद्र को यह नहीं बता सकती थी कि मोहन पढ़ने के स्थान पर आवारागर्दी कर रहा है। मोहन पढ़ने के स्थान पर समय नष्ट कर रहा था। अतः यह झूठ बोलकर वह घर में शांति बनाए रखना चाहती थी।
प्रश्न 2:कहानी के सबसे जीवंत पात्र के चरित्र की दृढ़ता का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर : कहानी का सबसे जीवंत पात्र सिद्धेश्वरी है। वह जानती है कि घर की स्थिति सही नहीं है। खाने के लिए प्रयाप्त भोजन नहीं है। फिर भी वह स्थिति को संभाले रखती है। घर में किसी को पता नहीं चलने देती कि घर में खाने के लिए भोजन नहीं है। वह जानती है कि परिवारजन सच्चाई से वाकिफ है लेकिन अपने झूठ से वह उनके अंदर विश्वास कायम रखती है। वह परिवारजनों के मध्य भी प्रेमभाव को बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। सबके मन हालातों से टूटे हुए हैं लेकिन वह इन टूटे हुए सभी मन को अपने झूठ से संभाले हुए रखती है।
प्रश्न 3:कहानी के उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे गरीबी की विवशता झाँक रही हो।
उत्तर : निम्नलिखित प्रसंगों से गरीबी की विवशता झाँक रही है-
(क) लड़का नंग-धड़ंग पड़ा था। उसके गले तथा छाती की हड्डियाँ साफ़ दिखाई दे रही थी। उसके हाथ-पैर बासी ककड़ियों की तरह सूखे, बेजान पड़े थे और उसका पेट हँडिया की तरह फूला हुआ था।
(ख) बच्चे के मुँह पर अपना एक फटा, गंदा ब्लाउज़ डाल दिया।
(ग) बटलोई की दाल को कटोरे में उँड़ेल दिया, पर वह पूरा भरा नहीं । छिपुली में थोड़ी-सी चने की तरकारी बची थी, उसे पास खींच लिया। रोटियों की थाली को उसने पास खींच लिया, उसमें केवल एक रोटी बची थी। मोटी, भद्दी और जली उस रोटी को वह जूठी थाली में रखने जा रही रही थी कि अचानक कुछ देर तक एकटक देखा, फिर रोटी को दो बराबर टुकड़ों में विभाजित कर दिया। एक टुकड़े को तो अलग रख दिया और दूसरे टुकड़े को अपनी जूठी थाली में रख लिया। तदुपरांत एक लोटा पानी लेकर खाने बैठ गई। उसने पहला ग्रास मुँह में रखा और तब न मालूम कहाँ से उसकी आँखों से आँसू चूने लगे।
(घ) सारा घर मक्खियों से भनभन कर रहा था। आँगन में अलगनी पर एक गंदी साड़ी टँगी थी, जिसमें कई पैबंद लगे हुए थे।
प्रश्न 4:’सिद्धेश्वरी का एक दूसरे सदस्य के विषय में झूठ बोलना परिवार को जोड़ने का अनथक प्रयास था’ – इस संबंध में आप अपने विचार लिखिए।
उत्तर : सिद्धेश्वरी जानती थी कि घर की स्थिति को लेकर घर का प्रत्येक सदस्य एक-दूसरे से खींचा हुआ था। वह झूठ बोलकर उसे सामान्य करने का प्रयास करती है। हम यह नहीं कह सकते कि यह प्रयास अनथक था या अथक। वह प्रयास अवश्य कर रही थी। पिता उसके मुँह से तारीफ को सुनकर प्रसन्न हो गए थे। कठिन समय में यही तारीफ घरवालों को आपस में बाँधे हुए थी। मोहन और रामचंद्र के मध्य अवश्य एक खींचतान दिखाई देती है लेकिन सिद्धेश्वरी अपने झूठ से उसे भी कम करने का प्रयास करती है। यदि वह ऐसा न करे, तो घर में सब बिखर कर रह जाए। वह जहाँ-तहाँ यह प्रयास करते हुए दिखाई देती है। इस तरह अपने घर को एक किए हुए है। अतः इसे अनथक प्रयास नहीं कहा जा सकता है।
प्रश्न 5:’अमरकांत आम बोलचाल की ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं जिससे कहानी की संवेदना पूरी तरह उभरकर आ जाती है।’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : अमरकांत की भाषा आम बोलचाल की भाषा है। इसमें बनावट का लेशमात्र नहीं है। वे बड़े सहज रूप में बात कह जाते हैं। उदाहरण के लिए-
सिद्धेश्वरी ने पूछा, ‘बड़का की कसम, एक रोटी देती हूँ। अभी बहुत-सी हैं।’
मुंशी जी ने पत्नी की ओर अपराधी के समान तथा रसोई की ओर कनखी से देखा, तत्पश्चात किसी घुटे उस्ताद की भाँति बोले, ‘रोटी….. रहने दो, पेट काफ़ी भर चुका है। अन्न और नमकीन चीज़ों से तबीयत ऊब भी गई है। तुमने व्यर्थ में कसम धरा दी। खैर, रखने के लिए ले रहा हूँ। गुड़ होगा क्या?’
इसमें लेखक ने ‘कनखी’, ‘घुटे उस्ताद’, ‘बड़के धरा दी’ जैसे शब्दों का प्रयोग कर भाषा को सजीव बना दिया है।
प्रश्न 6: रामचंद्र मोहन और मुंशी जी खाते समय रोटी न लेने के लिए बहाने करते हैं, उसमें कैसी विवशता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : सब जानते हैं कि घर में पेटभर भोजन करने के लिए अन्न नहीं है। सिद्धेश्वरी रोटी देने पर ज़ोर डालकर उन्हें यही साबित करना चाहती है कि अन्न भरा पड़ा है। किसी को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। रामचंद्र तथा मुंशी जी स्थिति से वाकिफ हैं। वे रोटी न लेने के लिए बहाने बनाकर सिद्धेश्वरी को धोखा देने का प्रयास करते हैं कि उन्हें भूख नहीं है। यह उनकी विवशता है कि वे आधे पेट होने पर भी पेट भरे होने की बात कह रहे हैं। यह उनकी गरीबी है, जो उनसे झूठ बुलवा रही है।
प्रश्न 7:मुंशी जी तथा सिद्धेश्वरी की असंबद्ध बातें कहानी से कैसे संबंद्ध है? लिखिए।
उत्तर : मुंशी जी तथा सिद्धेश्वरी के मध्य जो बातें होती हैं, वे आपस में संबंद्ध नहीं रखती हैं। सिद्धेश्वरी अचानक मुंशी जी से बारिश के विषय में, कभी फूफा जी के विषय में, कभी गंगाशरण बाबू की लड़की के विषय में बात करके माहौल को हल्का करने प्रयास करती है। वह जानती है कि मुंशी जी के पास उसके प्रश्नों का उत्तर नहीं है। यदि उत्तर होता, तो इससे पहले ही जवाब मिल गया होता। मुंशी जी की स्थिति भी वह समझती है। घर की आर्थिक स्थिति खराब है। मुंशी जी के पास नौकरी नहीं है। वह तलाश कर रहे हैं मगर अभी तक कामयाब नहीं हुए हैं। घर में खाने के लिए नहीं है। बड़ा लड़का नौकरी के लिए मारा-मारा फिर है। मुंशी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। अतः मुंशी जी स्वयं घर की स्थिति पर बात करने से कतराते हैं। अतः वह प्रयास करते हैं कि कम ही बोले। उन दोनों के मध्य स्थिति को सामान्य करने के लिए सिद्धेश्वरी असंबंद्ध बातें करती है, जो कहानी से संबंद्ध बनाए रखने में सहायता करती हैं।
प्रश्न 8:’दोपहर का भोजन’ शीर्षक किन दृष्टियों से पूर्णतया सार्थक है?
उत्तर : पूरी कहानी में दोपहर के भोजन के समय को दर्शाया गया है। रामचंद्र तथा मोहन का दोपहर में आना तथा फिर चले जाना। पिताजी का विश्राम करना आदि बातें दोपहर के समय को सार्थक कर देती हैं। सभी आते हैं और खाना खाने के पश्चात चले जाते हैं। अतः इस कहानी का नाम निम्नलिखित दृष्टों से पूर्णतया सार्थक है।
प्रश्न 9:आपके अनुसार सिद्धेश्वरी के झूठ सौ सत्यों से भारी कैसे हैं? अपने शब्दों में उत्तर दीजिए।
उत्तर : सिद्धेश्वरी ने जो भी झूठ बोले वह अपने परिवार के मध्य एकता, प्रेम और शांति स्थापित करने के लिए बोले थे। उसके झूठों में किसी प्रकार का स्वार्थ विद्यमान नहीं था। उसके झूठ एक भाई का दूसरे भाई के प्रति, बच्चों का पिता के प्रति तथा पिता की बच्चों के प्रति आपसी समझ और प्रेम बढ़ाने के लिए बोले गए थे। इस तरह वह परिवार को मुसीबत के समय एक बनाए रखने का प्रयास करती है। अतः उसके झूठ सौ सत्यों से भारी हैं। झूठ वह कहलाता है, जिससे किसी का नुकसान हो। इन झूठों से किसी का नुकसान नहीं था। परिवार को जोड़े रखने का ये माध्यम थे। ये झूठ अच्छी भावना लेकर बोले गए थे। अतः ये सौ सत्य से बहुत अच्छे हैं।
प्रश्न 10:आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई।
(ख) यह कहकर उसने अपने मँझले लड़के की ओर इस तरह देखा, जैसे उसने कोई चोरी की हो।
(ग) मुंशी जी ने चने के दानों की ओर इस दिलचस्पी से दृष्टिपात किया, जैसे उनसे बातचीत करनेवाले हो।
उत्तर :
(क) सिद्धेश्वरी को अचानक याद आया कि उसे पानी की प्यास लगी है। अतः वह ऐसे उठी मानो वह मतवाली हो गई है। उसने उसी अंदाज़ में घड़े में लोटा डाला और उससे गटा-गटा पानी पी गई।
(ख) सिद्धेश्वरी ने मोहन को यह झूठ बोला कि बड़ा भाई उसकी तारीफ़ कर रहा था। मोहन जानता था कि उसका बड़ा भाई उसकी तारीफ नहीं कर सकता है। अतः सिद्धेश्वरी ने झूठ बोलकर मोहन की ओर देखा। वह यह जानना चाहती थी कि कहीं मोहन ने उसका झूठ पकड़ तो नहीं लिया है।
(ग) कटोरे में दाल पीने के बाद कुछ चने के दाने बच गए थे। मुंशी को भरपेट खाना नहीं मिला था। अतः कटोरे में बचे चने के दानों को वह ललचाई निगाहों से देख रहे थे। अतः जिस तरह से वह चने के दानों को देख रहे थे ऐसा प्रतीत होता था मानो कुछ कहना चाह रहे हों।
प्रश्न 11: अपने आस-पास मौजूद समान परिस्थितियों वाले किसी विवश व्यक्ति अथवा विवशतापूर्ण घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर : हमारे घर के समीप गोविंदी नाम की स्त्री रहती हैं। उनके पति की मृत्यु के बाद उन पर घोर कष्ट आन पड़ा। वे पढ़ी-लिखी नहीं हैं। अतः दो बच्चों की ज़िम्मेदारी उन पर आन पड़ी। दो महीने तक वे जैसे-तैसे घर चलाती रहीं लेकिन उसके बाद घर चलाना उनके लिए कठिन हो गया। घर में खाने के लिए पैसे नहीं थे। मज़बूर होकर उन्होंने गुरुद्वारे का सहारा लिया। सुबह बच्चे स्कूल भूखे जाते और दोपहर तथा श्याम को गुरुद्वारे में खाना खाते। गुरुद्वारे वालों ने तरस खाकर उन्हें अपने यहाँ छोटा-मोटा काम दे दिया है। तब जाकर वह बच्चों की स्कूल की फीस भर पा रही हैं। खाने के लिए वे सब गुरुद्वारे के सहारे ही जिंदा है। हमारे घरों से उनके बच्चों के लिए कपड़े जाते हैं। उनके बच्चे कभी नए कपड़े पहनते थे। आज वे दूसरों के उतारे कपड़े पहनने को विवश हैं। उन्हें देखकर बहुत दुख होता है।
प्रश्न 12: ‘भूख और गरीबी में प्राय: धैर्य और संयम नहीं टिक पाते हैं।’ इसके आलोक में सिद्धेश्वरी के चरित्र पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर : ऐसा देखा गया है कि भूख और गरीबी में प्रायः धैर्य और संयम नहीं टिक पाते हैं। सिद्धेश्वरी भी भयंकर गरीबी का सामना कर रही थी। वह इसका सामना अकेली नहीं कर रही थी। उस पर तीन बेटों और परिवार की ज़िम्मेदारी थी। यदि वह अपना धैर्य और संयम छोड़ देती है, तो परिवार का सर्वनाश होना निश्चित था। अतः वह दृढ़ता के साथ डटी रहती है। परिवार के किसी सदस्य का धैर्य या संयम हिल न जाए, तो वह झूठ बोलकर सबमें इसे बनाए रखने का प्रयास करती है। इससे पता चलता है कि वह समझदार, दृढ़ व्यक्तित्व, ममतामयी, कुशल गृहणी थी। जो पहले परिवार की सोचती है और बाद में अपना। वह परिवारवालों की भूख का ध्यान अपनी भूख से अधिक रखती है। वह परिवारवालों के मध्य प्रेमभाव को बनाए रखती है। इसके लिए वह झूठ भी बोलती है मगर वह झूठ उसके परिवार की नींव को मज़बूत किए हुए हैं। जब तक वह परिवार में है, उसके परिवार को कोई दुख छू नहीं सकता है। उसका व्यक्तित्व बहुत विशाल है।