अंतरा भाग -1 भारतेंदु हरिश्चंद्र (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए )
प्रश्न 1:पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि ‘इस अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाए वहीं बहुत कुछ है क्यों कहा गया है?
उत्तर : पाठ में भारतेंदु जी ने बताया है कि भारतीय लोगों में आलस समा गया है। इस कारण वे काम करने से बचते हैं। देश में बेरोज़गारी बढ़ गई है। यह देखते हुए उन्होंने कहा है कि अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाए वही बहुत कुछ है। वह कहते हैं कि इसके लिए हमें सबसे पहले अपने अंदर व्याप्त आलस को हटाना होगा। भारतीयों ने निकम्मेपन का जो रोग पाल रखा है, उससे निजात पाना होगा। आलस मनुष्य को परिश्रम करने से रोकता है। इस तरह मनुष्य का और देश का विकास रुक जाता है।
प्रश्न 2:’जहाँ रॉबर्ट साहब बहादुर जैसे कलेक्टर हों, वहाँ क्यों न ऐसा समाज हो’ वाक्य में लेखक ने किस प्रकार के समाज की कल्पना की है?
उत्तर : इस वाक्य को लेखकर ने ऐसे समाज की कल्पना की जहाँ का राजा सजग हो। जहाँ का राजा सजग होगा, वहाँ के लोगों को सजग होना पड़ेगा। उनके अंदर आलस नहीं होगा। अपने तथा राज्य के विकास के लिए समाज को काम करना पड़ेगा। समाज की सजगता के कारण चारों ओर उन्नति तथा विकास होगा।
प्रश्न 3:जिस प्रकार ट्रेन बिना इंजिन के नहीं चल सकती ठीक उसी प्रकार ‘हिंदुस्तानी लोगों को कोई चलानेवाला हो’ से लेखक ने अपने देश की खराबियों के मूल कारण खोजने के लिए क्यों कहा है?
उत्तर : लेखक मानते हैं कि हिदुस्तानी लोग आलस के कारण बेकार हो गए हैं। उनकी जो योग्यताएँ और क्षमताएँ हैं, वे आलसपने के कारण समाप्त हो गई हैं। अब उनमें नेतृत्व का गुण नहीं रहा है। उन्हें ट्रेन के इंजन की भांति कोई-न-कोई नेतृत्व करने वाला चाहिए। पूरे भारत में अलग-अलग जाति, संप्रदाय आदि के लोग रहते हैं। इनमें स्वयं चलने की क्षमता है ही नहीं। इन्हें सदियों से एक बाहरी व्यक्ति ही अपने इशारे पर नचा रहा है। यह सही नहीं है। अतः लेखक कहता है कि हमें इसका कारण खोजना पड़ेगा। हम जब तक कारण की जड़ नहीं खोज पाएँगे, तब तक हम समस्या को नहीं पहचान पाएँगे। हमें चाहिए कि समस्या को ढूँढे और उसका हल निकालें। हम भारतीयों में यही कमी है कि हम समस्या को तो पहचान लेते हैं लेकिन कारण की जड़ नहीं ढूँढते। जिस दिन हमने यह पहचान लिया, उस दिन हमारे दिन फिर जाएँगे।
प्रश्न 4:देश की सब प्रकार की उन्नति हो, इसके लिए लेखक ने जो उपाय बताए उनमें से किन्हीं चार का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर : पाठ में लेखक ने देश की उन्नति के चार उपाय बताएँ हैं। वे इस प्रकार हैं-
(क) लेखक कहता है कि आलस्य हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है। उसी ने हमें निकम्मा बनाया हुआ है। अतः हमें इस आलस्य को त्यागना होगा और अपने समय का सही सदुपयोग करना होगा। इस तरह हम समय का सही उपयोग करके उन्नति के मार्ग में चल सकते हैं।(ख) हमें अपने स्वार्थों तथा हितों का त्याग करना होगा। लेखक के अनुसार हमें अपने देश, जाति, समाज इत्यादि के लिए अपने स्वार्थों तथा हितों का त्याग करना होगा।(ग) शिक्षा के महत्व को समझना होगा। हमें शिक्षा के महत्व को समझकर उसे भारत के घर-घर पहुँचाना होगा। इस तरह शिक्षित भारत की उन्नति निश्चित है।
(घ) हमें भारत से बाहर जाकर भी अन्य स्थानों को समझना होगा। इस तरह हम कुएँ का मेंढक नहीं रहेंगे और हमारी तरक्की अवश्य होगी।
प्रश्न 5:लेखक जनता के मत-मतांतर छोड़कर आपसी प्रेम बढ़ाने का आग्रह क्यों करता है?
उत्तर : लेखक जानता है कि भारतीय जनता के पिछड़ेपन के पीछे सबसे बड़ा कारण यहाँ व्याप्त जाति तथा धार्मिक भेदभाव है। इसी ने भारत की नींव को खोखला किया हुआ है। इसी के कारण भारत की एकता तथा अखण्डता खंडित हो रही है। लोग धर्म तथा जाति के नाम पर दिलों में दूरियाँ बनाए हुए हैं। इसका फायदा दूसरे ले रहे हैं। अंग्रेज़ों ने ही ‘फूट डालो शासन करो की नीति’ से यहाँ पर राज़ किया है। जिस दिन भारतीय मत-मतांतर को छोड़कर आपसी प्रेम बढ़ाने लगेंगे, हमारा देश एकता के सूत्र में बंध जाएगा। कोई ऐसी शासन-व्यवस्था नहीं होगी, जो हमें गुलाम बनाकर रख सके। अतः वह मत-मतांतर छोड़कर आपसी प्रेम बढ़ाने का आग्रह करता है।
प्रश्न 6: आज देश की आर्थिक स्थिति के संदर्भ में निम्नलिखित वाक्य को एक अनुच्छेद में स्पष्ट कीजिए-
‘जैसे हज़ार धारा होकर गंगा समुद्र में मिली हैं, वैसी ही तुम्हारी लक्ष्मी हज़ार तरह से इंग्लैड, फरांसीस, जर्मनी, अमेरिका को जाती हैं।’
उत्तर : लेखक कहता है कि भारत का पैसा आज हज़ार रुपों में होता हुआ इंग्लैंड, फरांसीस, जर्मनी तथा अमेरिका में जा रहा है। आज की स्थिति पूरी तरह ऐसी नहीं है फिर भी हमारा पैसा इन देशों में जा रहा है। आज भी भारतीय विदेशी ब्राँड के कपड़े, जूते, घड़ियाँ, इत्र इत्यादि पहनते हैं और पैसे बाहर जाता है। हम भी व्यापारिक लेन-देन के कारण विदेशी मुद्रा भारत लाते हैं। इस तरह स्थिति बराबर की बनी हुई है।
प्रश्न 7:(क) पाठ के आधार पर निम्नलिखित का कारण स्पष्ट कीजिए-
• एकादशी का व्रत
• गंगा जी का पानी पहले सिर पर चढ़ाना
• दीवाली मनाना
• होली मनाना
(ख) उक्त संदर्भ में क्यों कहा गया है कि ‘यही तिहवार ही तुम्हारी मानो म्युनिसिपालिटी हैं’?
उत्तर :
(क)
• बलिया का मेला स्नान करने के लिए होता है। इस दिन सभी स्नान करते हैं और अपनों से मिलते हैं।
• यह व्रत शरीर के शुद्धिकरण के लिए किया जाता है।
• गंगा जी में जाने से पहले पानी सिर पर डालने से पैर के तलुए में व्याप्त गर्मी सिर पर प्रभाव नहीं छोड़ती है।
• दीवाली के त्योहार में घर की सफाई हो जाती है।
• वसंत की हवा जो मनुष्य को नुकसान पहुँचा सकती है। जगह-जगह पर आग जलाने से ठीक हो जाती है।
(ख) जिस प्रकार म्युनिसिपालिटी शहर की साफ़-सफ़ाई इत्यादि का ध्यान रखती हैं, ऐसे ही त्योहार भी म्युनिसिपालिटी की तरह हमारे घर तथा शरीर की साफ़-सफ़ाई का ध्यान रखते हैं। इन आने से घर की सफ़ाई होती है और गंदगी बाहर निकाल दी जाती है। किसी न किसी रूप में यह हमारा ध्यान रखते हैं।
प्रश्न 8:आपके विचार से देश की उन्नति किस प्रकार संभव है? कोई चार उदाहरण तर्क सहित दीजिए।
उत्तर : हमारे विचार से देश की उन्नति के लिए ये चार उपाय कारगर हैं।-
(क) हमें आलस्य नहीं करना चाहिए। हमेशा कार्य करते रहना चाहिए। इस तरह हम समय के मूल्य को पहचानकर उसका सही सदुपयोग कर पाएँगे।(ख) हमें अपने साथ-साथ देशों के विकास और उन्नति के लिए भी कार्य करना चाहिए। वैसे ही सर्व विदित है कि हम विकास और उन्नति की तरफ अग्रसर होते हैं, तो देश की उन्नति और विकास भी होता चला जाता है। देश से हम जुड़े हुए हैं। अतः हम उन्नति करते हैं, तो देश भी करेगा।
(ग) देश में शिक्षा का प्रसार करना आवश्यक है। जहाँ शिक्षा है, वहाँ विकास के मार्ग खुल जाते हैं। अतः प्रयास करना चाहिए कि देश में कोई अशिक्षित न रहें।
(घ) हमें जनसंख्या पर नियंत्रण रखना होगा। हमारे देश के साधन आबादी के कारण जल्दी समाप्त हो जाएँगे और हमें दूसरे देशों में निर्भर होना पड़ेगा। अतः हमें जनसंख्या को बढ़ने से रोकना होगा।
प्रश्न 9: भाषण की किन्हीं चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए कि पाठ ‘भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?’ एक भाषण है।
उत्तर : भाषण की चार विशेषताएँ इस प्रकार हैं।-
(क) भाषण संबोधन शैली पर आधारित होते हैं। इसे आरंभ ही संबोधन से किया जाता है।
(ख) भाषण के समय ऐसे उदाहरण जनता के सम्मुख रखे जाते हैं, जो उन्हें विषय से जोड़े रखें और बात को प्रभावी बनाएँ।
(ग) श्रोताओं को किसी विषय पर अवगत कराने के लिए यह सबसे उत्तम साधन है। इसके माध्यम से श्रोताओं का विश्वास हासिल किया जाता है। यह श्रोता से संबंध स्थापित करने का सबसे प्रभावी तरीका है।
(घ) ऐसे प्रसंगों का उल्लेख करना आवश्यक है, जो श्रोता के लिए नई और ज्ञानवर्धक हो।
भारतेन्दु जी का यह भाषण सुविख्यात है। इसके माध्यम से इन्होंने बलिया के लोगों को संबंधित किया। इसमें उन्होंने भारत के लोगों की कमियाँ बताई, ब्रिटिश शासन पर व्यंग्य किया तथा उनके कार्यों के लिए उनकी सराहना भी की है। इसमें उन्होंने कई विषयों पर बात की। लोगों को चेताने और सजग करने के उद्देश्य यह भाषण दिया। इस भाषण में हर उस विषय को रखा गया, जो भारत को किसी न किसी रूप से कमज़ोर बना रहा था।
प्रश्न 10:’अपने देश में अपनी भाषा में उन्नति करो’ से लेखक का क्या तात्पर्य है? वर्तमान संदर्भों में इसकी प्रासंगिता पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर : हर देश की अपनी राष्ट्रभाषा होती है। सारा सरकारी तथा अर्ध-सरकारी काम उसी भाषा में किया जाता है। वही शिक्षा का माध्यम भी है। कोई भी देश अपनी राष्ट्रभाषा के माध्यम से ही विकास पथ पर अग्रसर होता है। संसार के सभी देशों ने अपने देश की भाषा के माध्यम से ही अनेक आविष्कार किए हैं। अतः उन्नति से तात्पर्य भाषा के माध्यम से विकास को लेकर है। यह सही है कि जो देश अपनी भाषा में कामकाज करता है, उसका सम्मान करता है, वह आगे बढ़ता है। जापान तथा चीन जैसे देश अपनी भाषा का ही प्रयोग करते हैं। यही कारण है, आज ये देश सबसे सफल कहलाए जा सकते हैं। लेकिन विडबंना देखिए कि हिन्दी आज़ादी के 63 साल गुज़र जाने के पश्चात भी अपना सम्मानजनक स्थान नहीं पा सकी है। आज़ादी के समय हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने के प्रयास का भरसक विरोध किया गया और तर्क दिया गया कि इससे प्रांतीय भाषाएँ पिछड़ जाएँगी। हमारे देश के बड़े-बड़े प्रतिष्ठित नेता व अभिनेतागण अपनी भाषा में वक्तव्य देने से शर्माते हैं, तो वह कैसे स्वयं को भारत में प्रतिष्ठित कर पाऐगी। भारतीयों द्वारा ही हिन्दी अपमानित हो रही है। पिछले कुछ समय से अखिल भारतीय भाषा संरक्षण सगंठन हिंदी तथा अन्य भाषाओं को परीक्षणों का माध्यम बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है। उसे अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है। एक दिन ऐसा अवश्य आएगा, जब जनता सरकार को बाध्य कर देगी और हिंदी अपना स्थान अवश्य प्राप्त करेगी।
प्रश्न 11: पाठ में कई वर्ष पुरानी हिंदी भाषा का प्रयोग है इसलिए चाहैं, फैलावैं सकैगा आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है जो आज की हिंदी में चाहे, फैलाएँ, सकेगा आदि लिखे जाते हैं।
निम्नलिखित शब्दों को आज की हिंदी में लिखिए जैसे-
मिहनत, छिन-प्रतिछिन, तिहवार।
इसी प्रकार पाठ में से अन्य दस शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर :
मिहनत- मेहनत
छिन-प्रतिछिन- क्षण-प्रतिक्षण
तिहवार- त्योहार
पहिचानकर- पहचानकर
मूछैं- मूँछे
फरांसीस- फ्रांसीस
बढ़ै- बढ़े
दीआसलाई- दियासलाई
किताबैं- किताबें
सम्हाला- संभाला
चीज़ैं- चीज़ें
रक्खो- रखो
सुधरैगा- सुधरेगा
छोड़ौं- छोड़ें
कहैं- कहें
करै-करे
प्रश्न 12: निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) राजे-महाराजों को अपनी पूजा, भोजन, झूठ गप से छुट्टी नहीं।
(ख) सबके जी में यही है कि पाला हमीं पहले छू लें।
(ग) हमको पेट के धंधे के मारे छुट्टी ही नहीं रहती बाबा, हम क्या उन्नति करैं?
(घ) यह तो वही मसल हुई कि एक बेफ़िकरे मँगनी का कपड़ा पहिनकर किसी महफिल में गए।
उत्तर :
(क) इस पंक्ति में लेखक ने उस समय के राजा-महाराजों की स्थिति के बारे में कहा है। उस समय के राजा-महाराजा प्रजा की समस्याओं को हल करने के स्थान पर पूजा-पाठ, खाने-पीने तथा बेकार की बातों करने और छट्टियाँ माने में समय नष्ट कर देते थे। अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति उनका व्यवहार उपेक्षा भरा था।
(ख) अर्थात सब यही चाहते हैं कि हमें ही सबकुछ पहले मिले।
(ग) भारतीयों को बस रोजी-रोटी से लेना-देना है। जो मिलता है, उसे में ही वे खुश हो जाते हैं। यही कारण है कि भारतीयों की उन्नति नहीं होती है। जीवन में मात्र पेट भरना ही लक्ष्य नहीं होना चाहिए। हमें कुछ करके दिखाना भी चाहिए।
(घ) यह लेखक ने ऐसे लोगों पर व्यंग्य कसा है कि जो दूसरों के साधनों पर आराम करते हैं। वे स्वयं प्रयास नहीं करते। माँगकर पहनते हैं और उसी में जीवन का रस समझते हैं।
प्रश्न 13:निम्नलिखित गद्यांशों की व्याख्या कीजिए-
(क) सास के अनुमोदन से …………….. फिर परदेस चला जाएगा।
(ख) दरिद्र कुटुंबी इस तरह …………… वही दशा हिंदुस्तान की है।
(ग) वास्तविक धर्म तो ……………….. शोधे और बदले जा सकते हैं।
उत्तर : (क) लेखक भारवासियों के आलस्य प्रवृत्ति पर उदाहरण के माध्यम से कटाक्ष करते हैं। वह बताते हैं कि एक बहू अपनी सास से पति से मिलने की आज्ञा लेकर पति के पास गई। वहाँ उसका मिलन नहीं हो पाया। कारण वह लज्जा के कारण कुछ बोल ही नहीं पायी। सारी परिस्थितियाँ उसके अनुकूल थीं। मगर लज्जा उसके मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बन गई। उसे इस कारण पति का मुख देखना भी नसीब नहीं हुआ। अब इसे उसका दुर्भाग्य ही कहें कि अगले दिन उसका पति वापिस जाने वाला था। अतः उसने आया अवसर गँवा दिया। इसके माध्यम से लेखक बताना चाहते हैं कि भारवासियों को सभी प्रकार के अवसर मिले हुए हैं। भारतवासियों में आलस्य इस प्रकार छाया हुआ है कि वह इस अवसर का सही उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। इसके बाद यह अवसर चला गया, तो हमारे पास दुख और पछतावे के अतिरिक्त कुछ नहीं बचेगा।
(ख) इसका आशय है कि एक गरीब परिवार समाज में अपनी इज्जत बचाने में असमर्थ हो जाता है। लेखक एक उदाहरण के माध्यम से अपनी बात स्पष्ट करते हैं। वे कहते हैं कि गरीब तथा कुलीन वधू अपने फटे हुए वस्त्रों में अपने अंगों को छिपाकर अपनी इज्जत बचाने का हर संभव प्रयास करती है। भाव यह है कि उसके पास साधन बहुत ही सीमित हैं और वह उसमें ही कोशिश करती है। ऐसे ही भारतावासियों के हाल है। चारों ओर गरीबी विद्यमान है। सभी गरीबी से त्रस्त हैं। इसके कारण लोग अपनी इज्जत बचा पाने में असमर्थ हो रहे हैं। यह गद्यांश भारत की गरीबी का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है।
(ग) यह गद्यांश उस स्वरूप को दर्शाता है, जो भारत में विद्यमान धर्मों का है। धर्म मनुष्य को भगवान के चरण कमलों की भक्ति करने के लिए कहता है। हमें इसे समझना होगा। जो अन्य बातें धर्म के साथ जोड़ी गई हैं, वे समाज-धर्म कहलाती हैं। समय और देश के अनुसार इनमें परिवर्तन किया जाना चाहिए। धर्म का मूल स्वरूप हमेशा एक सा रहता है। बस हमें उसके व्यावहारिक पक्ष को बदलने का प्रयास करना चाहिए।
प्रश्न 14:देश की उन्नति के लिए भारतेंदु ने जो आह्वान किया है उसे विस्तार से लिखिए।
उत्तर : भारतेंदु लोगों को पश्चिमी देशों से सीख लेने की बात कहते हैं। वह कहते हैं कि भारतवासी इंजन बनने की क्षमता खो चुके हैं। वे तो बस रेल के डिब्बों के समान बने हुए हैं, जिन्हें चलाने के लिए इंजन चाहिए। हमारे राजाओं को समय नष्ट करना आता है मगर अंग्रेज़ ऐसा नहीं करते हैं। उनके अनुसार पश्चिमी देश आगे निकल गए हैं और भारतवासी आलस और निकम्मे के कारण पीछे रह गए हैं। कई लोग अपना सारा जीवन यह कहकर नष्ट कर देते हैं कि उन्हें पेट के लिए कमाना है। वे मानते हैं कि भरे पेट लोग उन्नति के विषय में सोचें। भारत के अतिरिक्त बाहरी देशों में भी कई लोग हैं, जो आधे पेट रहते हैं मगर वे अपना समय नष्ट नहीं करते हैं। वहाँ के खेतवाले, मज़दूर तथा कोचवान समय नष्ट करने के स्थान पर अखबार पढ़ते हैं। भारत में निकम्मे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही हैं, ये लोग काम करने के स्थान पर खाली बैठे रहते हैं। लोग गरीबी का अभिशाप झेल रहे हैं। अपनी इज्जत बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। हमें अपनी कमियों, अवगुणों, आलस्य को हटाकर उन्नति के लिए कार्य करने होगे। लोगों को निंदा के डर को निकालकर कर्म करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले हमें धर्म की उन्नति करनी पड़ेगी। जो अन्य बातें धर्म के साथ जोड़ी गई हैं, वे समाज-धर्म कहलाती हैं। समय और देश के अनुसार इनमें परिवर्तन किया जाना चाहिए। धर्म का मूल स्वरूप हमेशा एक-सा रहता है। बस हो सके व्यावहारिक पक्ष को बदला जा सकता है। वे मानते हैं कि आपसी मतभेद मिटाकर एक होने की आवश्यकता है। धर्म, जाति आदि के नाम पर लड़ने के स्थान पर एक हो जाना चाहिए। सबका सम्मान करना चाहिए। मसनवी तथा इंदरसभा जैसे साहित्य के स्थान पर अच्छा साहित्य पढ़वाना चाहिए। युवाओं को शिक्षा दीजिए तथा उनमें मेहनत का गुण भरिए। हमें आवश्यकता है कि नींद से जागे और देश की उन्नति के लिए आगे बढ़ें। हमें विदेश वस्तु और भाषा को हटाकर अपने स्वदेशी वस्तु और भाषा पर विश्वास रखना चाहिए।
प्रश्न 15: पंक्ति पूरी कीजिए, अर्थ लिखिए और इन्हें जिन कवियों-शायरों ने लिखा है, कहा है, उनका नाम लिखिए-
(क) अजगर करै न चाकरी, पंछी करे न काम ………………..
(ग) अबकी चढ़ी कमान, को जाने फिर कब चढ़ै ………………
(घ) शौक तिफ़्ली से मुझे गुल की जो दीदार का था …………….
उत्तर :
(क) अजगर करै न चाकरी, पंछी करे न काम।
दास मलूका कहि गए, सबके दाता राम।। (मलूकदास)
अर्थ- अजगर को किसी की नौकरी नहीं करनी पड़ती है और पक्षी भी कोई काम नहीं करता है। मलूकादास कहते हैं, जिसके दाता राम हैं, उसे कुछ करने की आवश्यकता नहीं है।
(ग) अबकी चढ़ी कमान, को जाने फिर कब चढ़ै।
जिनि चुक्के चौहान, इक्के मारय इक्क सर।। (चंद वरदाई)
अर्थ- राजा सुन ले इस बार कमान को चढ़ा ले क्योंकि फिर कोई नहीं जानता कि यह अवसर कब मिले। अतः इस अवसर को हाथ से मत गँवाना और इस एक सिर को एक ही बार में मार गिराओ।
(घ) शौक तिफ़्ली से मुझे गुल की जो दीदार का था।
न किया हमने गुलिस्तां का सबक याद कभी।। (शौक तिफ़्ली)
अर्थ- मुझे आशा थी कि कोई मुझे फूल देगा। इस कारण से हमने कभी गुलिस्तां (बगीचे) के बारे में जानने का प्रयास किया ही नहीं।
प्रश्न 16:भारतेंदु उर्दू में किस उपनाम से कविताएँ लिखते थे? उनकी कुछ उर्दू कविताएँ ढूँढ़कर लिखिए।
उत्तर : उर्दू साहित्य में भारतेन्दु जी ‘रसा’ उपनाम से लिखा करते थे। उनकी एक गज़ल इस प्रकार है।-
फिर आई फ़स्ले गुल फिर जख़्मदह रह-रह के पकते हैं।
मेरे दागे जिगर पर सूरते लाला लहकते हैं।
नसीहत है अबस नासेह बयाँ नाहक ही बकते हैं।
जो बहके दुख्तेरज से हैं वह कब इनसे बहकते हैं?
कोई जाकर कहो ये आख़िरी पैगाम उस बुत से।
अरे आ जा अभी दम तन में बाक़ी है सिसकते हैं ।
न बोसा लेने देते हैं न लगते हैं गले मेरे।
अभी कम-उम्र हैं हर बात पर मुझ से झिझकते हैं।
व गैरों को अदा से कत्ल जब बेबाक करते हैं।
तो उसकी तेग़ को हम आह किस हैरत से तकते हैं।
उड़ा लाए हो यह तर्जे सखुन किस से बताओ तो।
दमे तक़दीर गोया बाग़ में बुलबुल चहकते हैं।
‘रसा’ की है तलाशे यार में यह दश्त-पैमाई।
कि मिस्ले शीशा मेरे पाँव के छाले झलकते हैं।
प्रश्न 17:पृथ्वी राज चौहान की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर : पृथ्वी राज दिल्ली का आखिरी राजा था। कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री राजकुमारी संयोगिता से उसने विवाह किया था। उसने संयोगिता के बुलावे पर उसका अपहरण किया। इस तरह से राजा जयचंद उसका शत्रु बन बैठा। उसने ही मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज से बदला लेने के लिए भारत में आक्रमण करने का निमंत्रण दिया। उसका और पृथ्वीराज का 16 बार आमना-सामना हुआ। 17वीं बार उसने अंतिम प्रयास किया इस बार उसने रणनीति से कार्य लिया था। पृथ्वीराज की शक्ति बार-बार युद्ध के कारण समाप्त हो रही थी। राजा जयचंद का धोखा इसमें और भी कारगर सिद्ध हुआ। इस बार वह सफल हुआ और 1192 में दिल्ली पर उसका कब्ज़ा हो गया। पृथ्वीराज और उसके मित्र चंदबरदाई को अपने साथ ले गया। पृथ्वीराज की आँखें फोड़ दी गई थीं। गौरी ने सुना था कि पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण की कला जानता है। उसने इस कला को देखने के लिए अपनी इच्छा जाहिर की। यही उसकी बड़ी गलती थी। चंदबरदाई ने चतुरता से पृथ्वीराज को गौरी की सही स्थिति बता दी। पृथ्वीराज ने उसके निर्देश अनुसार उसे मार गिराया।