क्या निराश हुआ जाए
Exercise : Solution of Questions on page Number : 39
प्रश्न 1: लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है फिर भी वह निराश नहीं हैं। आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है?
उत्तर : यहाँ लेखक का आशावादी व्यक्तित्व सामने आता है। जहाँ तक लेखक ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों का वर्णन किया है, लेखक ने धोखा भी खाया है। पर उसका मानना है कि अगर वो इन धोखों को याद रखेगा तो उसके लिए विश्वास करना बेहद कष्टकारी होगा और इसके साथ-साथ ये उन लोगों पर अंगुली उठाएगा जो आज भी ईमानदारी व मनुष्यता के सजीव उदाहरण हैं। यहीं लेखक का आशावादी होना उजागर होता है और उन्हीं लोगों का सम्मान करते हुए उनकी उपेक्षा नहीं करना चाहता जिन्होनें कठिन समय में उसकी मदद की है। सही मायने में यह बात एकदम उचित है और यही कारण है कि वो अभी भी निराश नहीं है।
Exercise : Solution of Questions on page Number : 40
प्रश्न 1: दोषों का पर्दाफ़ाश करना कब बुरा रूप ले सकता है?
उत्तर : लेखक के अनुसार, दोषों का पर्दाफ़ाश करना बुरी बात नहीं होती है। परन्तु, इसमें बुराई तब सम्मिलित हो जाती है जब हम किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लेते है। लेखक के अनुसार यह ग़लत बात है। हमारा दूसरों के दोषोद्घाटन को अपना कर्त्तव्य मान लेना सही नहीं है। हम यह नहीं समझते कि बुराई समान रूप से हम सबमें विद्यमान है। यह भूलकर हम किसी की बुराई में रस लेना आरम्भ कर देते हैं और अपना मनोरंजन करने लग जाते हैं। परन्तु, हम उसके द्वारा की गई अच्छाई को तो उजागर ही नहीं करते। हम उसकी बुराईयों का उतना रस नहीं लेंगे अगर हम उसके व्यक्तित्व के अच्छे पहलुओं की तरफ़ देखें। उसके द्वारा किये गये अच्छे कार्यों को सराहें तों उसके लिए और समाज के लिए यह उतना ही लाभकारी होगा। परन्तु, बुरा तब होता है जब हम उसकी बुराई में तो रस ले लेते हैं पर अच्छाई को भुला देते हैं।
प्रश्न 2: आजकल के बहुत से समाचार पत्र या समाचार चैनल ‘दोषों का पर्दाफ़ाश’ कर रहे हैं। इस प्रकार समाचारों और कार्यक्रमों की सार्थकता पर तर्क सहित विचार लिखिए।
उत्तर : टीवी चैनल व समाचार पत्रों द्वारा जो ‘दोषों का पर्दाफ़ाश’ किया जा रहा है वो पहले किसी सीमा तक सही हुआ करता था। परन्तु, आज टीवी चैनलों और समाचार पत्रों की भरमार के कारण उनके बीच में जनमें श्रेष्ठ-दिखाने-की-होड़ ने इसे धंधा बना दिया है। इससे लोग दोनों पक्षों की सच्चाई जाने बिना ही अपनी तरफ़ से दोषारोपण आरम्भ कर देते हैं। इस बात को तनिक भी नहीं सोचते कि इससे किसी के जीवन पर बुरा असर पड़ सकता है। समाचार पत्र और चैनल सिर्फ अपनी T.R.P. का ही ध्यान रखते हैं। सच तो जैसे कुछ होता ही नहीं है। जैसे आरूषि हत्याकांड में आरूषि के पिता पर हत्या का आरोप लगाया गया। मीडिया ने भी इस विषय को खूब भुनाया परन्तु अंत में वो निर्दोंष पाये गये। जितनी बड़ी हानि तलवार दंपत्ति को हुई, उसका कोई हिसाब नहीं है पर समाचार पत्रों व टीवी चैनलों के लिए यह T.R.P. बढ़ाने का एक साधन मात्र था, सच्चाई सामने लाने का नहीं। दूसरा उदाहरण एक स्कूल शिक्षिका पर स्कूल की लड़कियों को देह-व्यापार में डालने का आरोप लगाया गया। एक न्यूज़ चैनल द्वारा इसका पर्दाफ़ाश किया गया था परन्तु जब सच सामने आया तो पाया गया कि वो बिल्कुल निर्दोष थी। क्या उस चैनल द्वारा किया गया कार्य उचित था? जो भी हो, इस से चैनलों की सार्थकता पर सवाल ज़रूर उठता है।
प्रश्न 1: लेखक ने लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ क्यों रखा होगा? क्या आप इससे भी बेहतर शीर्षक सुझा सकते हैं?
उत्तर : लेखक ने इस लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ उचित रखा है क्योंकि यह उस सत्य को उजागर करता है जो हम अपने आसपास घटते देखते रहते हैं। अगर हम एक-दो बार धोखा खाने पर यही सोचते रहें कि इस संसार में ईमानदार लोगों की कमी हो गयी है तो यह सही नहीं होगा। आज भी ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अपनी ईमानदारी को बरकरार रखा है। लेखक ने इसी आधार पर लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ रखा है। यही कारण है कि लेखक कहता है “ठगा में भी गया हूँ, धोखा मैनें भी खाया है। परन्तु, ऐसी घटनाएँ भी मिल जाती हैं जब लोगों ने अकारण ही सहायता भी की है, जिससे मैं अपने को ढाँढस देता हूँ।”
यदि लेख का शीर्षक ”उजाले की ओर” होता तो शायद लेखक की बात को और बल मिलता।
Exercise : Solution of Questions on page Number : 41
प्रश्न 1: दो शब्दों के मिलने से समास बनता है। समास का एक प्रकार है-द्वंद्व समास। इसमें दोनों शब्द प्रधान होते हैं। जब दोनों भाग प्रधान होंगे तो एक-दूसरे में द्वंद्व (स्पर्धा, होड़) की संभावना होती है। कोई किसी से पीछे रहना नहीं चाहता, जैस – चरम और परम = चरम-परम, भीरु और बेबस = भीरू-बेबस। दिन और रात = दिन-रात।
‘और’ के साथ आए शब्दों के जोड़े को ‘और’ हटाकर (-) योजक चिह्न भी लगाया जाता है। कभी-कभी एक साथ भी लिखा जाता है। द्वंद्व समास के बारह उदाहरण ढूँढ़कर लिखिए।
उत्तर :
1 सुख और दुख सुख-दुख
2 भूख और प्यास भूख-प्यास
3 हँसना और रोना हँसना-रोना
4 आते और जाते आते-जाते
5 राजा और रानी राजा-रानी
6 चाचा और चाची चाचा-चाची
7 सच्चा और झूठा सच्चा-झूठा
8 पाना और खोना पाना-खोना
9 पाप और पुण्य पाप-पुण्य
10 स्त्री और पुरूष स्त्री-पुरूष
11राम और सीता राम-सीता
12 आना और जाना आना-जाना
प्रश्न 2: पाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाओं के उदाहरण खोजकर लिखिए।
उत्तर : व्यक्तिवाचक संज्ञा: रबींद्रनाथ टैगोर, मदनमोहन मालवीय, तिलक, महात्मा गाँधी आदि।
जातिवाचक संज्ञा: बस, यात्री, मनुष्य, ड्राइवर, कंडक्टर, हिन्दू, मुस्लिम, आर्य, द्रविड़, पति, पत्नि आदि।
भाववाचक संज्ञा: ईमानदारी, सच्चाई, झूठ, चोर, डकैत आदि।
प्रश्न 2: यदि ‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद कोई विराम चिह्न लगाने के लिए कहा जाए तो आप दिए गए चिह्नों में से कौन-सा चिह्न लगाएँगे? अपने चुनाव का कारण भी बताइए। -, । . ! ? . ; – , …. ।
● ”आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत कठिन है।” क्या आप इस बात से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर : यदि किसी विराम चिन्ह का प्रयोग करने हेतु कहा जाए तो मैं शीर्षक के अंत में प्रश्नवाचक (?) चिन्ह लगाना चाहूँगी। मैं यह चिन्ह इसलिए लगाना चाहूँगी कि मैं उन लोगों से प्रश्न कर सकूँ जो कहते हैं कि अब ईमानदारी और इंसानियत खत्म हो गई है। क्या उनके जीवन में कभी कोई ऐसी घटना नहीं घटी होगी जब किसी ने उनकी सहायता बिना किसी स्वार्थ के की हो? सहायता किसी को मात्र पैसे या वस्तु दे कर नहीं की जा सकती। अपितु सही समय पर सही वस्तु दे कर भी सहायता की जा सकती है। जैसे लेखक ने लिखा कि बस के खराब होने पर उनके बच्चे भूख व प्यास से बिलख़ रहे थे, पर वो कुछ भी नहीं कर पा रहे थे। अगर इस बात पर ध्यान दिया जाए तो क्या लेखक के पास पैसे नहीं थे? उनके पास पैसे अवश्य थे पर उनकी बस ऐसे स्थान पर खराब हो गई थी जहाँ भोजन व पानी नहीं मिल सकता था। यही कारण है कि कंडक्टर द्वारा लाया गया दूध उनके लिए उस समय महत्वपूर्ण था। इसका तात्पर्य यह है कि छोटी-छोटी चीजों की मदद भी सहायता कही जाती है। अतः कंडक्टर द्वारा किया गया कार्य इंसानियत हीं कहलाएगा क्योंकि उसने यह कार्य बिना किसी स्वार्थ के किया।