छितिज भाग -2 महावीरप्रसाद द्विवेदी
प्रश्न 1:कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया?
उत्तर: कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने अनेक तर्कों के द्वारा उनके विचारों का खंडन किया है –
(1) प्राचीन काल में भी स्त्रियाँ शिक्षा ग्रहण कर सकती थीं। सीता, शकुंतला, रुकमणी, आदि महिलाएँ इसका उदाहरण हैं। वेदों, पुराणों में इसका प्रमाण भी मिलता है।
(2) प्राचीन युग में अनेक पदों की रचना भी स्त्री ने की है।
(3) यदि गृह कलह स्त्रियों की शिक्षा का ही परिणाम है तो मर्दों की शिक्षा पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए। क्योंकि चोरी, डकैती, रिश्वत लेना, हत्या जैसे दंडनीय अपराध भी मर्दों की शिक्षा का ही परिणाम है।
(4) जो लोग यह कहते हैं कि पुराने ज़माने में स्त्रियाँ नहीं पढ़ती थीं। वे या तो इतिहास से अनभिज्ञ हैं या फिर समाज के लोगों को धोखा देते हैं।
(5) अगर ऐसा था भी कि पुराने ज़माने की स्त्रियों की शिक्षा पर रोक थी तो उस नियम को हमें तोड़ देना चाहिए क्योंकि ये समाज की उन्नति में बाधक है।
प्रश्न 2: ‘स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं’ – कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है, अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: स्त्रियों की शिक्षा से अनर्थ होने की बात पर द्विवेदी जी ने इसका विरोध किया है। उन्होंने स्त्री शिक्षा को समाज की उन्नति के लिए आवश्यक माना है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यदि स्त्री शिक्षा से अनर्थ होता है तो पुरुषों द्वारा किए गए अनर्थ भी उसी शिक्षा के परिणाम होने चाहिए। जैसे – चोरी करना, डाका डालना, हत्या करना, घूस लेना आदि। ये सभी गलत काम का कारण शिक्षा नहीं है बल्कि ये मानव प्रकृति पर आधारित हैं। अत: हमें स्त्री शिक्षा का समर्थन करना चाहिए।
प्रश्न 3: द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोघी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है – जैसे ‘यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरूषों का मुकाबला करतीं।’ आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।
उत्तर: स्त्री शिक्षा से सम्बन्धित कुछ व्यंग्य जो द्विवेदी जी द्वारा दिए गए हैं –
(1) स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट! ऐसी ही दलीलों और दृष्टांतो के आधार पर कुछ लोग स्त्रियों को अपढ़ रखकर भारतवर्ष का गौरव बढ़ाना चाहते हैं।
(2) स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ यदि पढ़ाने ही का परिणाम है तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी विद्या और शिक्षा का ही परिणाम समझना चाहिए।
(3) “आर्य पुत्र, शाबाश! बड़ा अच्छा काम किया जो मेरे साथ गांधर्व-विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति हैं!”
(4) अत्रि की पत्नी पत्नी-धर्म पर व्याख्यान देते समय घंटो पांडित्य प्रकट करे, गार्गी बड़े-बड़े ब्रह्मवादियों को हरा दे, मंडन मिश्र की सहधर्मचारिणी शंकराचार्य के छक्के छुड़ा दे! गज़ब! इससे अधिक भयंकर बात और क्या हो सकेगी!
(5) जिन पंडितों ने गाथा-सप्तशती, सेतुबंध-महाकाव्य और कुमारपालचरित आदि ग्रंथ प्राकृत में बनाए हैं, वे यदि अपढ़ और गँवार थे तो हिंदी के प्रसिद्ध से भी प्रसिद्ध अख़बार का संपादक को इस ज़माने में अपढ़ और गँवार कहा जा सकता है; क्योंकि वह अपने ज़माने की प्रचलित भाषा में अख़बार लिखता है।
प्रश्न 4:पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है – पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: पुराने ज़माने की स्त्रियों द्वारा प्राकृत में बोलना उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। जिस तरह आज हिंदी जन साधारण की भाषा है। यदि हिंदी बोलना और लिखना अपढ़ और अशिक्षित होने का प्रमाण नहीं है तो उस समय प्राकृत बोलने वाले भी अपढ़ या गँवार नहीं हो सकते। यदि ऐसा होता तो बौद्धों तथा जैनों के हज़ारों ग्रंथ प्राकृत में क्यों लिखे जाते? इसका एकमात्र कारण यही है कि प्राकृत उस समय की सर्वसाधारण की भाषा थी। अत: उस समय की स्त्रियों का प्राकृत भाषा में बोलना उनके अपढ़ होने का सबूत नहीं है।
प्रश्न 5: परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ाते हों-तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर: स्त्री तथा पुरुष दोनों ही एक समान हैं। समाज की उन्नति के लिए दोनों का सहयोग ज़रुरी है। ऐसे में स्त्रियों का कम महत्व समझना गलत है, इसे रोकना चाहिए। जहाँ तक परंपरा का प्रश्न है, परंपराओं का स्वरुप पहले से बदल गया है। अत: स्त्री तथा पुरुष की असमानता की परंपरा को भी बदलना ज़रुरी है।
प्रश्न 6: तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।
उत्तर: पहले की शिक्षा प्रणाली और आज की शिक्षा प्रणाली में बहुत परिवर्तन आया है। पहले शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरुकुल में रहना ज़रूरी था। परन्तु आज शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय है। पहले शिक्षा एक वर्ग तक सीमित थी। लेकिन आज किसी भी जाति के तथा वर्ग के लोग शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न 7: महावीरप्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?
उत्तर: महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने निबंध के माध्यम से अपनी सोच को व्यक्त किया है। उस समय समाज में स्त्री शिक्षा पर प्रतिबंध था। उन्होंने स्त्री शिक्षा के महत्व को समाज के सामने रखा। आज समाज में, स्त्रियों में बहुत बदलाव आया है। आज की स्त्रियाँ पुरुषों के समान हैं। इससे द्विवेदी जी की दूरगामी सोच का प्रमाण मिलता है। स्त्रियों की शिक्षा को लेकर उनकी सोच खुली थी। वे स्त्रियों को समाज की उन्नति के लिए महत्वपूर्ण मानते थे।
प्रश्न 8: द्विवेदी जी की भाषा-शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर: द्विवेदी जी की भाषा खड़ी बोली हिंदी थी। इन्होंने खड़ी बोली हिंदी को गद्य की भाषा के रुप में प्रधानता दी। इन्होंने व्याकरण तथा वर्तनी की अशुद्धियों पर विशेष ध्यान दिया, उनकी भाषा में तत्सम शब्द अधिक होते हैं। उन्होंने व्यंग्यात्मक शैली का भी प्रयोग किया।
प्रश्न 9: निम्नलिखित अनेकार्थी शब्दों को ऐसे वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए जिनमें उनके एकाधिक अर्थ स्पष्ट हों –
चाल, दल, पत्र, हरा, पर, फल, कुल
उत्तर:
• चाल
(1) (चालाकी) राधा को पुरस्कार देना, उसकी चाल है।
(2) (चलना) अपनी चाल को तेज़ करो।
• दल
(1) (टोली) उस दल का नेता बहुत अच्छे स्वभाव वाला है।
(2) (पंखुड़ियाँ) फूल का दल बहुत कोमल है।
• पत्र
(1) (चिट्ठी) मैंने अपने भाई को एक चिट्ठी लिखी।
(2) (पत्ती) पहले भोजपत्र पर लिखा जाता था।
• हरा
(1) (रंग) पत्तों का रंग हरा होता है।
(2) (ताज़ा) इतनी गर्मी होने के बाद भी तालाब का पानी अभी भी हरा-भरा है।
• पर
(1) (पंख) तुमने उस पक्षी के पर क्यों काट दिए।
(2) (लेकिन) तुम उसे नहीं जानते पर मैं उसे अच्छी तरह से जानती हूँ।
• फल
(1) (खाने वाला फल) इस पेड़ के फल बहुत मीठे हैं।
(2) (परिणाम) उसके कार्य का फल बहुत बुरा था।
• कुल
(1) (वंश) ऊँचें कुल में जन्म लेने से कोई ऊँचा नहीं हो जाता।
(2) (पूरा) हमारे देश की कुल आबादी कितनी होगी?