छितिज भाग -2 जयशंकर प्रसाद
प्रश्न 1: कवि आत्मकथा लिखने सेक्यों बचना चाहता है?
उत्तर: आत्मकथा लिखने के लिए अपने मन कि दुर्बलताओं, कमियों का उल्लेख करना पड़ता है। कवि स्वयं को इतना सामान्य मानता है कि आत्मकथा लिखकर वह खुद को विशेष नहीं बनाना चाहता है, कवि अपने व्यक्तिगत अनुभवों को दुनिया के समक्ष व्यक्त नहीं करना चाहता। क्योंकि वह अपने व्यक्तिगत जीवन को उपहास का कारण नहीं बनाना चाहता। इन्हीं कारणों से कवि आत्मकथा लिखने से बचना चाहता है।
प्रश्न 2: आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में ‘अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर: कवि को लगता है कि आत्मकथा लिखने का अभी उचित समय नहीं हुआ है। क्योंकि आत्मकथा लिखकर कवि अपने मन में दबे हुए कष्टों को याद करके दु:खी नहीं होना चाहता है, अपनी छोटी से कथा को बड़ा आकार देने में वे असमर्थ हैं, वे अपने अंतर्मन को लोगों के समक्ष प्रस्तुत करना नहीं चाहते हैं। आत्मकथा प्राय: जीवन के उत्तरार्ध में लिखी जाती है। परन्तु अभी जीवन में ऐसा समय नहीं आया है। कवि को ऐसा लगता है कि अभी ऐसी कोई उपलब्धि नहीं मिली है जिसे वह लोगों के सामने प्रेरणा स्वरुप रख सके। इन्हीं कारणों से कवि ऐसा कहते हैं कि अभी आत्मकथा लिखने का समय नहीं हुआ है।
प्रश्न 3: स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशयहै?
उत्तर: कवि की प्रेयसी उससे दूर हो गई है। कवि के मन-मस्तिष्क पर केवल उसकी स्मृति ही है। इन्हीं स्मृतियों को कवि अपने जीने का संबल अर्थात् सहारा बनाना चाहता है। अत: स्मृति को पाथेय बनाने से कवि का आशय स्मृति के सहारे से है।
प्रश्न 4: भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर:
(क) कवि कहना चाहता है कि उसे वह सुख नहीं मिल सका जिसकी वह कल्पना कर रहा था। उसे सुख मिलते-मिलते रह गया। अर्थात् इस दुनिया में सुख छलावा मात्र है। हम जिसे सुख समझते हैं वह अधिक समय तक नहीं रहता है, स्वप्न की तरह जल्दी ही समाप्त हो जाता है।
(ख) कवि अपनी प्रेयसी के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि नायिका के कपोल अर्थात् गाल में इतनी लालिमा थी कि उषा भी उसमें अपना सुहाग ढूँढती थी। अत: नायिका का सौंदर्य अनुपम था।
प्रश्न 5: ‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’ – कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर: कवि यह कहना चाहता है कि अपनी प्रेयसी के साथ बिताए गए क्षणों को वह सबके सामने कैसे प्रकट करे। जीवन के कुछ अनुभवों को गोपनीय रखना ही उचित होता है। ऐसी स्मृतियों को वह सबके सामने प्रस्तुत कर अपनी हँसी नहीं उड़ाना चाहता है। अत: वह अपने जीवन की मधुर स्मृतियों को अपने तक ही सीमित रखना चाहता है।
प्रश्न 6: ‘आत्मकथ्य’ कविता की
काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहितलिखिए।
उत्तर: ‘जयशंकर प्रसाद’ द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
(1) प्रस्तुत कविता में कवि ने खड़ी बोली हिंदी भाषा का प्रयोग किया है –
“यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य–मलिन उपहास।”
(2) अपने मनोभावों को व्यक्त कर उसमें सजीवता लाने के लिए कवि ने कविता में बिम्बों का प्रयोग किया है; जैसे –
“जिसके अरुण–कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।”
(3) प्रस्तुत कविता में कवि ने ललित, सुंदर एवं नवीन शब्दों का प्रयोग किया है –
“यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊ में।
भूले अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाउँ मैं।”
यहाँ-विडंबना, प्रवंचना जैसे नवीन शब्दों का प्रयोग किया गया है जिससे काव्य में सुंदरता आई है।
(4) अलंकारों के प्रयोग से काव्य सौंदर्य बढ़ गया है –
• खिल–खिलाकर, आते–आते में पुनरुक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया है।
• अरुण– कपोलों में रुपक अलंकार है।
• मेरी मौन, अनुरागी उषा में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 7: कवि ने जो सुख कास्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर: कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे वह अपनी प्रेयसी नायिका के माध्यम से व्यक्त करता है और कहता है कि नायिका स्वप्न में उसके पास आते-जाते मुस्कुरा कर भाग गई। अत: उसे उसका सुख नहीं मिल सका जिसे वह सुख समझता था वह स्वप्न रुपी छलावा थी। जो अस्थाई रुप से उसके जीवन में आई थी।
प्रश्न 8: इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: प्रसाद जी एक सीधे-सादे व्यक्तित्व के इंसान थे। उनके जीवन में दिखावा नहीं था। वे अपने जीवन के सुख-दुख को लोगों पर व्यक्त नहीं करना चाहते थे, अपनी दुर्बलताओं को अपने तक ही सीमित रखना चाहते थे। अपनी दुर्बलताओं को समाज में प्रस्तुत कर वे स्वयं को हँसी का पात्र बनाना नहीं चाहते थे। पाठ की कुछ पंक्तियाँ उनके वेदना पूर्ण जीवन को दर्शाती है। इस कविता में एक तरफ़ कवि की यथार्थवादी प्रवृति भी है तथा दूसरी तरफ़ प्रसाद जी की विनम्रता भी है। जिसके कारण वे स्वयं को श्रेष्ठ कवि मानने से इनकार करते हैं।
प्रश्न 9:आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों
उत्तर: नीचे कुछ महान व्यक्तियों की आत्मकथा का उल्लेख किया गया है। हमें उनकी आत्मकथा पढ़कर उनसे शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए –
(1) महात्मा गाँधी की आत्मकथा – हमें महात्मा गाँधी की आत्मकथा पढ़नी चाहिए। इससे हमें सत्य तथा अहिंसा के महत्व की जानकारी मिलती है।
(2) भगत सिंह की आत्मकथा – देशभक्त भगतसिंह की आत्मकथा को पढ़ने से हमें देश भक्ति की प्रेरणा मिलती है।
(3) महावीर प्रसाद द्विवेदी की आत्मकथा – प्रसिद्ध साहित्यकार महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण रहा है। एक महान साहित्यकार के रुप से हमें उनकी आत्मकथा पढ़नी चाहिए।
प्रश्न 10: कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रुप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।
उत्तर: आत्मकथात्मक शैली –
(1) जीवन परिचय
(2) शिक्षा
(3) जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएँ
(4) उपलब्धियाँ
(5) जीवन का आदर्श
(6) उद्देश्य
उपर्युक्त बिन्दुओं की सहायता से बच्चे स्वयं अपना आत्मकथ्य लिखें।