आरोह भाग -1 रामनरेश त्रिपाठी (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए )
प्रश्न 1:पथिक का मन कहाँ विचरना चाहता है?
उत्तर : पथिक का मन बादलों के ऊपर बैठकर नीले आकाश में घूमने का करता है। वह विशाल समुद्र में विद्यमान लहरों पर भी बैठकर घूमना चाहता है।
प्रश्न 2:सूर्योदय वर्णन के लिए किस तरह के बिंबों का प्रयोग हुआ है?
उत्तर : सूर्योदय वर्णन के लिए निम्नलिखित दृश्य-बिंबों का प्रयोग हुआ है।–
• कमला के कंचन-मंदिर का मानो कांत कँगूरा- इस बिंब में सूर्योदय को लक्ष्मी के सोने के मंदिर का कँगूरा (ऊपरी भाग) कहा गया है।
• रतनाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी- इस बिंब में समुद्र ने सूर्योदय द्वारा एक सुंदर सोने की सड़क बनाई दिखाई गई है।
प्रश्न 3:आशय स्पष्ट करें-
(क) सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
(ख) कैसी मधुर मनोहर उज्जवल है यह प्रेम-कहानी।
उत्तर : (क) पंक्ति का आशय है कि चेहरे पर मुस्कान लिए हुए इस संसार के स्वामी अर्थात परमात्मा धीमी गति से आते हुए प्रतीत हो रहे हैं। वह समुद्र के तट पर खड़े होकर आकाश गंगा के मीठे गीत गा रहा है। भाव यह है कि रात में समुद्र तट का सौंदर्य अद्भुत होता है। ऊपर तारों से भरा आकाश और नीचे स्थित समुद्र का सौंदर्य देखते बनता है।
(ख) पंक्ति का आशय है कि कवि समुद्र तट पर खड़ा है। वह यहाँ के प्रकृति दृश्य को देखकर हैरान और मंत्रमुग्ध है। यहाँ का सौंदर्य उसे एक मुधर, मनोहारी, उज्जवल प्रेम कहानी के समान प्रतीत होता है। वातावरण रूमानी जान पड़ता है। वह इस दृश्य से स्वयं को जोड़कर एक प्रेम कहानी लिखना चाहता है। इस तरह विश्व की वाणी बन इस प्रेम कहानी को सारे संसार में कहना चाहता है।
प्रश्न 4:कविता में कई स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। ऐसे उदाहरणों का भाव स्पष्ट करते हुए लिखो।
उत्तर : निम्नलिखित स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देख गया है।–
• प्रतिदिन नूतन वेश बनाकर, रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला।
प्रकृति हर क्षण यहाँ वेश बदल रही है। ऐसा लगता है कि बादलों की पंक्तियाँ सूरज के सामने नृत्य कर रही है। भाव यह है कि प्रकृति पल-पल बदल रही है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति अपना वेश बदल रही हो। सूरज के आगे बादल की पंक्तियाँ खड़ी हैं। ऐसा लगता है मानो वह सूर्य को नृत्य दिखा रही हो।
• रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी।
भाव यह है कि समुद्रतट से सूर्योदय के समय सोने के समान चमकता समुद्र देखने का अपना आनंद है। ऐसा लगता है मानो समुद्र ने एक सोने की सड़क लक्ष्मी देवी के लिए बना डाली हो।
• निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है।
भाव यह है कि समुद्र की आवाज़ ऐसी लग रही है मानो वह बिना डर के, मजबूती तथा गंभीरता के भाव लिए गरजना कर रहा हो।
• उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद्र विहँस देता है।
भाव यह है कि चंद्रमा की बदलते आकार या कलाओं को उसका हँसना बताया गया है।
प्रश्न 5:समुद्र को देखकर आपके मन में क्या भाव उठते हैं? लगभग 200 शब्दों में लिखें।
उत्तर : समुद्र एक ऐसा स्थल है, जिसे देखकर मैं मन की गहराइयों में डूब जाता हूँ। इसका रंग, इसका विशाल स्वरूप, इसका सौंदर्य मुझे अपनी ओर आकर्षित करते हैं। सोचता हूँ कि काश इसकी जैसी विशालता मेरे स्वभाव में आ जाए। समुद्र अपने अंदर कितने रहस्य को लिए रहता है मगर फिर भी शांत है। काश हर मनुष्य समुद्र के समान स्वभाव को अपना सकता। इसके अंदर विद्यमान लहरे जब तट पर आकर टकराती हैं, तो लगता है मानो कह रही हो कि जीवन संघर्ष से युक्त है। इसमें हराना नहीं है। बस लड़ते रहना चाहिए। इसका शांत स्वरूप जीवन में शांति प्रदान करता है। इसके अंदर विचरने वाले जीव मुझे हैरत में डाल देते हैं। कहीं विशाल प्राणी इसमें निवास करते हैं, तो कई अति सूक्ष्म प्राणी भी हैं। कोई समुद्र की गहराइयों में ही रहने वाले हैं, तो कोई समुद्र के सतह पर आकर हमें अपने अस्तित्व की सूचना देते हैं। समुद्र जहाँ हमारी आँखों को शांति प्रदान करता हैं, वहीं यह हमारे लिए जीविका का साधन भी है। इसके कारण ही मनुष्य समुद्रीय क्षेत्रों में रह पाया है। यह हमें देता ही देता है। हम इसे कभी कुछ नहीं दे पाते हैं। जब इसे क्रोध आता है, तो यह हमें समझा भी देता है कि शांत लोगों का क्रोध कितना भयानक होता है फिर तबाही ही आती है।
प्रश्न 6:प्रेम सत्य है, सुंदर है– प्रेम के विभिन्न रूपों को ध्यान में रखते हुए इस विषय पर परिचर्चा करें।
उत्तर : यह कथन सत्य है; प्रेम सत्य है और सुंदर है। प्रेम ऐसा भाव है, जिसे हो जाए उसका जीवन बदल जाता है। यहाँ पर हम प्रेमी-प्रेमिका के मध्य होने वाले प्रेम की बात नहीं कर रहे हैं। हम उस प्रेम की बात कर रहे है, जो पवित्र भावना है। यह भक्त का भगवान से, माँ का बच्चे से, पिता का अपनी संतान से, भाई का बहन से, गुरु का शिष्य से, मित्र का मित्र से, मनुष्य का पशु-पक्षियों से, पशु-पक्षियों का हमसे, विद्यार्थी का पढ़ाई से, डॉक्टर का अपने मरीज से, मछलियों का पानी से, पक्षियों का आकाश से इत्यादि प्रेम की बात कर रहे हैं। इस भावना से मनुष्य खोता कुछ नहीं है। बस पाता ही पाता है। जिसे प्रेम हो जाता है, उसे सारा संसार सुंदर दिखाई देता है। यह शाश्वत सत्य है, जो सदियों से मनुष्य के साथ है। इसके कारण ही यह संसार जीने योग्य है। प्रेम की भावना ही विश्वास और सुरक्षा के बीजों का रोपण करती है। जिससे प्रेम हो जाए, तब कुरुपता का कोई स्थान नहीं रहता है। कुरुपता में भी सुंदरता आ जाती है।
प्रश्न 7:वर्तमान समय में हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं– इस पर चर्चा करें और लिखें कि प्रकृति से जुड़े रहने के लिए क्या कर सकते हैं।
उत्तर : वर्तमान समय में मनुष्य के पास स्वयं के लिए समय नहीं है, तो प्रकृति के समीप रहना उसके लिए मुश्किल है। वह सुविधा संपन्न बनता जा रहा है। उसे जीवन में हर प्रकार की सुख-सुविधाएँ चाहिए। वह बड़े होटलों में खाना-पीना चाहता है। देश-विदेश में घूमना चाहता है। उसे जीवन बेहतर बनाना है। प्रकृति के मध्य रहकर यह संभव नहीं है। प्रकृति आत्म सुख देती है मगर मनुष्य की कभी न खत्म होने वाली इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पाती है। अतः मनुष्य न चाहते हुए भी उसे दूर जा रहा है। साल-दो साल में वह मन की शांति के लिए दस-पंद्रह दिन के लिए चला जाता है, यही उसकी प्रकृति का संग पाने की खानापूर्ति होती है। हमें चाहिए कि हम प्रकृति के मध्य रहे। इसे स्थानों पर साल में एक महीने के लिए जाएँ। अपने बच्चों को भी ले जाएँ ताकि वह प्रकृति तथा उससे मिलने वाले सुख को समझे। अपने आस-पास पेड़-पौधे लगाएँ। प्रकृति की असली सुंदरता लाने का प्रयास करें।
प्रश्न 8:सागर संबंधी दस कविताओं का संकलन करें और पोस्टर बनाएँ।
उत्तर : विद्यार्थी इसका संकलन स्वयं करें। इसके लिए वह अपने विद्यालय के पुस्तकालय की सहायता ले सकते हैं।