आरोह भाग -1 निर्मला पुतुल (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए )
प्रश्न 1:माटी का रंग प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर : माटी का रंग शब्दों का प्रयोग करके कवयित्री ने संथाल लोगों की ओर इशारा किया है। इसके माध्यम से कवयित्री अपनी संस्कृति को बचाने का प्रयास करती है।
प्रश्न 2:भाषी में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :भाषी में झारखंडीपन से अभिप्राय अपनी स्थानीय भाषा को संभाले रखना है। हमारी बोली में यह स्वरूप दिखाई देता है।
प्रश्न 3:दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?
उत्तर : ‘दिल के भोलेपन’ शब्द भाव की सहजता को दर्शाते हैं। अक्खड़पन और जूझारूपन शब्दों से बस्ती के लोगों के दृढ़ निश्चय और संघर्षशीलता का परिचय मिलता है। इन गुणों के कारण ही आदिवासी समाज पहचाना जाता है। यही गुण उन्हें शहरी लोगों से अलग बनाते हैं। अतः इन गुणों को बचाने के लिए कवयित्री ने बल दिया है।
प्रश्न 4:प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?
उत्तर : प्रस्तुत कविता में आदिवासी समाज की इन बुराइयों की ओर संकेत किया गया है।–
1. यह समाज शहरी जीवन से प्रभावित हो रहा है।
2. अब इनके जीवन में उत्साह समाप्त हो रहा है।
3. अब इनका अपने अस्त्रों तथा शस्त्रों से मोह समाप्त हो गया है।
4. अब ये विश्वास की भावना से विहीन हो रहे हैं।
प्रश्न 5:इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है- से क्या आशय है?
उत्तर : कवयित्री कहती हैं कि इस दौर में चीज़ें तेज़ी से बदल रही हैं। अतः इसके प्रभाव में जो भी आता है, वह प्रभावित हो जाता है। आज भी संथाली समाज इसके प्रभाव से पूर्ण रूप से प्रभावित नहीं है। अतः वह अपनी बुराइयों को हटा दे, तो वह अपने पुराने स्वरूप को पुनः पा सकता है। अभी तक उनकी संस्कृति, भाषा तथा परिवेश जीवित हैं। अतः इन्हें बचाया जा सकता है। हम थोड़ा-सा प्रयास करके इन्हें पुनः जीवित कर सकते हैं।
प्रश्न 6:निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए-
(क) ठंडी होती दिनचर्या में
जीवन की गर्माहट
(ख) थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपन
आओ, मिलकर बचाएँ।
उत्तर :
(क) प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री के अनुसार आज की दिनचर्या में पहले जैसी बात नहीं रही है। अब इस दिनचर्या में नीरसता ने स्थान ले लिया है। अतः इसमें पुनः गर्माहट या आनंद लाने की आवश्यकता है।
‘गर्माहट’ शब्द के माध्यम से इसमें लाक्षणिकता का गुण दृष्टिगोचर होता है। यह उत्साह को भी दर्शाता है।
(ख) इसमें कवयित्री कहती है कि इस संसार में लोग अविश्वास का वातावरण विद्यमान हो गया है। ऐसे में यदि हम लोगों के विश्वास, उम्मीद, तथा सपनों को बचा सकते हैं, जो जीवन सुख से भर जाएगा। ये इनके जीवन का आधार हैं। अतः हमें इन्हें बनाए रखना चाहिए।
कवयित्री ने अधिक शब्दों का प्रयोग नहीं किया है। अतः शब्दों की मितव्ययता का प्रयोग है। भाषा की सहजता और सरलता का गुण दृष्टिगोचर होता है। इसके माध्यम से कवयित्री इसे बचाने के लिए चेष्टा करती है।
प्रश्न 7:बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?
उत्तर : बस्तियों को शहर में विद्यमान चकाचौंध तथा बनावटी जीवन से बचाने की आवश्यकता है। यहाँ की चकाचौंध तथा बनावटी जीवन बस्तियों की पवित्रता और सरल जीवन पर प्रभाव डाल रही है। शहरों ने प्रदूषण की समस्या मनुष्य को उपहार स्वरूप दी है। यदि वह इस जीवन को अंगीकार करते हैं, तो प्रदूषण की समस्या वहाँ भी पसर जाएगी। वे अभी तक जिस सांस्कृतिक विरासत को संभाले हुए है, वह भी शहर के संपर्क में आने से नष्ट हो जाएगी। अतः हमें अपनी बस्तियों को इन सबसे बचाकर रखना चाहिए।
प्रश्न 8:आप अपने शहर या बस्ती की किन चीज़ों को बचाना चाहेंगे?
उत्तर : हम अपने शहर या बस्ती में विद्यमान प्राचीन धरोहर को बचाना चाहेंगे। मेरे शहर के मध्य प्राचीन मुगलकालीन इमारत है। यह इमारत उपेक्षा और अतिक्रमण का शिकार हो रही है। हम इसे बचाना चाहेंगे। यह वह इमारत है, जो हमें अपने इतिहास से जोड़े रखती है। अतः इसका नष्ट होने का अर्थ है अपने इतिहास की महत्वपूर्ण धरोहर से अपना नाता समाप्त करना।
प्रश्न 9:आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करें।
उत्तर : आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति अब सुधरने लगी है। वे जागरूकता की ओर अग्रसर हैं। वे शिक्षा के महत्व को समझ रहे हैं। अपनी विरासत को संभाले हुए आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं। इनमें कई ऐसे हैं, जो अपने क्षेत्र से निकलकर शहरों में सम्मान की जिंदगी जी रहे हैं। मगर आज भी ये सरकार द्वारा उपेक्षा का व्यवहार झेल रहे हैं। इनके विकास में परियोजना आदि अवश्य होती हैं मगर इनका लाभ इन्हें नहीं मिलता है। यह फाइलों के मध्य ही दब कर रह जाती है। इतना सब होते हुए भी इनका अस्तित्व बना हुआ है क्योंकि इन्होंने लड़ना सीख लिया है।