आरोह भाग -1 शेखर जोशी (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए )
प्रश्न 1: कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें, जिसमें किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है।
उत्तर : जब मास्टर जी धनराम को 13 का पहाड़ा याद करने के लिए कहते हैं। वह याद नहीं कर पाता। तब मास्टर जी उसे अपनी पाँच दरातियाँ धार लगवाने के लिए देते हैं। मास्टर जी मानते हैं कि किताबों की विद्या का ताप लगाने का सामर्थ्य धनराम के पिता में नहीं है। धनराम ने जैसे ही हाथ-पैर चलाना सिखा उसके पिता ने उसे धौंकनी फूँकने के काम में लगा दिया। इस तरह वह समय गुजरने के साथ ही हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या सीखने लगा। इस प्रसंग में किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है।
प्रश्न 2: धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी क्यों नहीं समझता था?
उत्तर : धनराम और मोहन दोनों अलग-अलग जाति के थे। धनराम के हृदय में बचपन से ही अपनी छोटी जाति को लेकर हीनभावना समा गई थी। इसके साथ-साथ वह मोहन की बुद्धिमानी को भी बहुत अच्छी तरह समझता था। अतः जब मोहन उसे मास्टर जी के कहने पर मारता या सज़ा देता, तो वह इन दोनों कारणों से उसे अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझता है। उसे लगता है कि मोहन यह सब करने का अधिकारी है।
प्रश्न 3: धनराम को मोहन के किस व्यवहार पर आश्चर्य होता है और क्यों?
उत्तर : धनराम को तब मोहन के व्यवहार पर आश्चर्य होता है, जब वह धनराम के साथ लोहे को रूप देने में सहयोग देता है। मोहन का संबंध उच्चवंश से है। वह जाति से ब्राह्मण है। उसकी जाति के लोग धनराम के साथ उठना-बैठना नहीं करते हैं। बहुत आवश्यकता होने पर वह उनकी दुकान पर खड़े हो जाते हैं मगर मेलजोल नहीं रखते हैं। मोहन इसके विपरीत धनराम के टोले पर चला जाता है। वहाँ वह धनराम के साथ उसकी दुकान पर बैठता है और जब वह लोहे को सही आकार नहीं दे पाता है, तो उसकी मदद भी करता है। एक ब्राह्मण लड़के को अपने समान काम करते देखकर उसे आश्चर्य होता है। मोहन पढ़ने के लिए गाँव से बाहर गया था मगर मोहन को लोहे को आकार देता देख, उसे समझ नहीं आता।
प्रश्न 4: मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है?
उत्तर : मोहन को उसके पिता ने अपने जाति भाई के साथ पढ़ने के लिए लखनऊ भेजा था। पिता-पुत्र के बहुत से स्वप्न थे। उन्हें लगता था कि वहाँ जाकर मोहन अच्छी पढ़ाई करेगा और अफसर बनेगा। मगर स्थिति इसके विपरीत निकली। यह अध्याय मोहन के जीवन की दिशा ही बदल गया। अपने गाँव का होनहार विद्यार्थी माना जाने वाला मोहन वहाँ जाकर गली-मोहल्ले का नौकर बन गया। पढ़ाई के स्थान पर उसे घर के कामों में लगा दिया गया। एक साधारण से विद्यालय में भर्ती कराया गया मगर कोई उसकी पढ़ाई के हक में नहीं था। वहाँ उसकी पढ़ाई बाधित होने लगी और अंतत एक होनहार विद्यार्थी लोगों के स्वार्थ की भेंट चढ़ गया। उसे विवश होकर लोहे के कारखाने में नौकरी करनी पड़ी। यह एक ऐसा नया अध्याय था, जिसने मोहन की जिंदगी बदलकर रख दी।
प्रश्न 5: मास्टर त्रिलोक सिंह के किस कथन को लेखक ने ज़बान के चाबुक कहा है और क्यों?
उत्तर : धनराम को तेरह का पहाड़ा मार खाने के बाद भी याद नहीं हुआ तो, मास्टर त्रिलोक सिंह ने उसे कहा कि तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें। अपने इस कथन से उन्होंने धनराम के कोमल दिल में ऐसी चोट की कि वह बात उसके दिल में घर कर गई। यह ज़बान की चाबुक से पड़ी ऐसी मार थी, जिसके निशान शरीर पर नहीं धनराम के दिल पर लगे थे। एक बच्चे के मन ने इस बात को मान लिया कि वह पढ़ने के लायक नहीं है। यही कारण है मास्टर त्रिलोक सिंह के कथन को लेखक ने ज़बान के चाबुक कहा है।
प्रश्न 6: (1) बिरादरी का यही सहारा होता है।
क. किसने किससे कहा?
ख. किस प्रसंग में कहा?
ग. किस आशय से कहा?
घ. क्या कहानी में यह आशय स्पष्ट हुआ है?
(2) उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी– कहानी का यह वाक्य-
क. किसके लिए कहा गया है?
ख. किस प्रसंग में कहा गया है?
ग. यह पात्र-विशेष के किन चारित्रिक पहलुओं को उजागर करता है?
उत्तर :
(1) क. यह कथन पंडित वंशीधर ने गाँव के व्यक्ति से कहा।
ख. जब रमेश ने वंशीधर को शहर ले जाकर अच्छे विद्यालय में पढ़ाने की बात कही, तब वंशीधर ने उससे यह बात कही। उसकी बात सुनकर वे प्रसन्न हो गए। उन्हें मोहन का सुनहरा भविष्य शहर में दिखाई देने लगा।
ग. अपनी जाति की एकता और प्रेम को दिखाने के लिए तथा रमेश के प्रति धन्यवाद व्यक्त करने हेतु कहा गया।
घ. कहानी में इसका आशय स्पष्ट नहीं हुआ बल्कि इसके विपरीत ही दिखाई दिया। रमेश तथा उसके परिवार ने मोहन का भविष्य नष्ट कर दिया और होनहार मोहन के भविष्य को चौपट कर दिया। उन्होंने मोहन को अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग किया।
(2) उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी- कहानी का यह वाक्य-
क. यह कथन मोहन के लिए कहा गया है।
ख. जब मोहन ने धनराम के लोहे को अपनी चोटों से इच्छित आकार दे दिया, तब उसकी आँखों में यह सर्जक की चमक दिखाई दी।
ग. यह पात्र-विशेष के उस चारित्रिक विशेषता का सूचक हैं, जहाँ उसके परिश्रम का पता चलता है और जाति के स्थान पर कार्य के प्रति प्रेम को दर्शाता है।
प्रश्न 7:गाँव और शहर, दोनों जगहों पर चलने वाले मोहन के जीवन-संघर्ष में क्या फर्क है? चर्चा करें लिखें।
उत्तर : गाँव और शहर दोनों जगहों पर चलने वाले मोहन के जीवन-संघर्ष में बहुत फर्क है। गाँव का मोहन विद्या प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहा था। गाँव में उसका एक होनहार बालक के रूप में सम्मान था। उसने अपनी एक पहचान बनाई थी। मास्टर, पिताजी तथा स्वयं उसको अपने से उम्मीदें थीं। उसे बस अपने सपनों को पाने के लिए प्रयास करना था। वह प्रयास कर भी रहा था यदि उसके साथ प्राकृतिक आपदा के समय वह दुर्घटना नहीं घट जाती। शायद वह गाँव के दूसरे विद्यालय में जाकर अपनी शिक्षा प्राप्त कर सकता था मगर ऐसा नहीं हुआ। उस एक घटना से उसके जीवन की दिशा बदलकर रख दी। उसके विद्यार्थी संघर्ष को विराम लग गया और वह गाँव से निकलकर शहर आ गया। शहर में जो संघर्ष था, वह चारों ओर से था। अपनी पढ़ाई के लिए संघर्ष दूसरों के घरों में दिए जाने वाले काम को करने का संघर्ष, अपने अस्तित्व को बचाए रखने का संघर्ष, दूसरे लोगों के घर में रहकर उनके द्वारा किए जाने वाले खराब व्यवहार से संघर्ष, नौकरी प्राप्त करने का संघर्ष। इन संघर्षों ने होनहार बालक मोहन का अंत कर दिया। जो बालक निकला, वह एक परिपक्व और दूसरी सोच का बालक था। भविष्य के सुनहरे सपने कहीं हवा हो चुके थे। जीवन की परिभाषा बदल चुकी थी।
प्रश्न 8: एक अध्यापक के रूप में त्रिलोकसिंह का व्यक्तित्व आपको कैसा लगता है? अपनी समझ में उनकी खूबियों और खामियों पर विचार करें।
उत्तर : एक अध्यापक के रूप में हमें त्रिलोकसिंह का व्यक्तित्व प्रभावी नहीं लगा। वे एक अच्छे अध्यापक थे। बच्चों को प्रोत्साहित करते हैं। उनके भविष्य के लिए उन्हें चिंता होती है। बच्चों के माता-पिता के पास जाकर उन्हें बच्चों के विषय में जानकारी देते हैं। इन बातों से हम उन्हें अच्छा बोल सकते हैं। बच्चों के प्रति उनकी ज़िम्मेदारी मात्र ऐसे विद्यार्थियों की तरफ़ थीं, जो होनहार हैं। होनहार विद्यार्थियों को वे आगे बढ़ाते थे तथा उनका प्रोत्साहन करते थे। मोहन ऐसे बालकों में से एक था। धनराम जैसे बालकों को वे प्रोत्साहित नहीं करते। अपनी चाबुक की समान बातों से उन्हें तोड़ डालते हैं। एक अध्यापक की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वह प्रत्येक विद्यार्थी के विकास के लिए कार्य करे। एक बुद्धिमान विद्यार्थी के स्थान पर ऐसे बालकों पर काम करें, जो कम बुद्धिमान हैं। शिक्षा देना उनका कार्य है। अतः वह शिक्षा का गलत बँटवारा नहीं कर सकते हैं। उन्हें चाहिए था कि जैसा व्यवहार तथा प्रेम वे मोहन से किया करते थे, वैसा ही धनराम के साथ भी करना चाहिए था। मोहन से अधिक प्रोत्साहन और ध्यान की आवश्यकता धनराम को थी। मास्टर जी ने ऐसा नहीं किया। उनके कथनों ने धनराम को शिक्षा के प्रति उपेक्षित बना दिया और वह पिता की दुकान पर जा बैठा।
प्रश्न 9: ‘गलता लोहा’ कहानी का अंत एक खास तरीके से होता है। क्या इस कहानी का कोई अन्य अंत हो सकता है? चर्चा करें।
उत्तर : इस कहानी का अंत लेखक ने बहुत सुंदर तरीके से किया है। जहाँ पर धनराम के मुख पर उसने हैरानी के भाव छोड़े हैं, वहीं उसने समाज में मोहन के भविष्य की ओर संकेत भी किया है। इस कहानी का अन्य कोई अंत मुझे दिखाई नहीं पड़ता है। यदि पीछे की ओर देखते हैं, तो मोहन के पास अब वह विकल्प नहीं बचे हैं, जो उसे सुनहरे भविष्य की ओर ले जाएँ। मोहन लोहे पर हथौड़ा मारकर उसे जो आकार देता है, वह बताता है कि उसके कदम भविष्य की नई दिशा की ओर चल पड़े हैं। अब वह जाति भेदभाव से अलग हो चुका है और काम को अपना जीवन मानता है। उसकी आँखों में सृजन की चमक बताती है कि उसके अंदर वह आत्मविश्वास और कुछ कर दिखाने की चाह समाप्त नहीं हुई है। उसने अपने लिए नया रास्ता चुन लिया है। यह रास्ता हर बंधनों से अलग है। यह रास्ता उसे कर्म की ओर ले जाता है, ऐसा कर्म जिसने समाज को एक कर दिया है।
यह अंत हो सकता था कि हताश मोहन धनराम के कार्य को देखकर आत्मग्लानि के भाव से भर जाता है और उदास अपने घर की ओर चल पड़ता है। मगर यह अंत कहानी को सुखांत नहीं दुखांत बना देता। हम समाज में ऐसा अंत देकर उसे पथभ्रष्ट नहीं कर सकते हैं। अतः लेखक का दिया अंत ही अच्छा है।
प्रश्न 10: पाठ में निम्नलिखित शब्द लोहकर्म से संबंधित हैं। किसका क्या प्रयोजन है? शब्द के समाने लिखिए-
1. धौंकनी ………………..
2. दराँती ………………..
3. सँड़सी ………………..
4. आफर ………………..
5. हथौड़ा ………………..
उत्तर :
1. धौंकनी- कोयले में आग सुलगाने के लिए।
2. दराँती- घास, पौधों, फल, सब्ज़ियों को काटने के लिए।
3. सँड़सी- ठोस तथा गरम वस्तु को पकड़े के लिए।
4. आफर- लोहे की धातु से सामान बनाने की दुकान।
5. हथौड़ा- चीज़ों को ठोकने या चोट मारने के लिए।
प्रश्न 11: पाठ में काट-छाँटकर जैसे कई संयुक्त क्रिया शब्दों का प्रयोग हुआ है। कोई पाँच शब्द पाठ में से चुनकर लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर : संयुक्त क्रिया शब्द इस प्रकार हैं-
(क) घूम-फिरकरः मैं घूम-फिरकर फिर यहीं आ गया।
(ख) उठा-पटक करः बच्चे पूरे दिन घर में उठा-पटक कर अब सोए हैं।
(ग) सहमते-सहमतेः मैं सहमते-सहमते घर के अंदर आई।
(घ) घूर-घूरकरः अध्यापक मुझे घूर-घूरकर देख रहे थे।
(ङ) पहुँचते-पहुँचतेः मुझे पहुँचते-पहुँचते देर हो गई।
प्रश्न 12: बूते का प्रयोग पाठ में तीन स्थानों पर हुआ है, उन्हें छाँटकर लिखिए और जिन संदर्भों में उनका प्रयोग है, उन संदर्भों में उन्हें स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) जब पंडित वंशीधर के बारे में आरंभ में बताया जाता है, तब ‘बूते पर’ शब्दों का प्रयोग होता है। प्रसंग इस प्रकार है-
वंशीधर दान-दक्षिणा के बूते पर परिवार का आधा पेट भर पाते हैं।
इस पंक्ति में ‘बूते पर’ शब्द का अर्थ बल पर है। अर्थात वह दान-दक्षिणा के बल पर ही परिवार का पेट पालते थे।
(ख) आरंभ में जब वह पंडित वंशीधर की अधिक उम्र को दर्शाना चाहते हैं, तब ‘बूते की’ शब्दों का प्रयोग होता है। प्रसंग इस प्रकार है-
सीधी चढ़ाई चढ़ना पुरोहित के बूते की बात नहीं थी।
इस पंक्ति पर ‘बूते की’ शब्द का अर्थ पंडित की असमर्थता दिखाने के लिए किया गया है। अर्थात अब सीधी चढ़ाई पर चढ़ना उनके समर्थ नहीं थे।
(ग) जब वंशीधर के कार्य करने की असमर्थता दिखाई जाती है, तब भी ‘बूते का’ शब्दों का प्रयोग होता है। प्रसंग इस प्रकार है-
बूढ़े वंशीधर के बूते का अब यह काम नहीं रहा।
इस पंक्ति में ‘बूते’ का शब्द का अर्थ पंडित की काम न करने की अमसर्थता दिखाई गई है। अर्थात अब वह काम करने लायक नहीं रहे हैं। उम्र के कारण उन्हें काम करने में असुविधा होता है।
प्रश्न 13: मोहन! थोड़ा दही तो ला दे बाज़ार से।
मोहन! ये कपड़े धोबी को दे तो आ।
मोहन! एक किलो आलू तो ला दे।
ऊपर के वाक्यों में मोहन को आदेश दिए गए हैं। इन वाक्यों में आप सर्वनाम का इस्तेमाल करते हुए उन्हें दुबारा लिखिए।
उत्तर :– आप! बाज़ार से थोड़ा दही तो ला दीजिए।
– आप! ये कपड़े धोबी को तो दे आइए।
– आप! एक किलो आलू तो ला दीजिए।
प्रश्न 14: विभिन्न व्यापारी अपने उत्पाद की बिक्री के लिए अनेक तरह के विज्ञापन बनाते हैं। आप भी हाथ से बनी किसी वस्तु की बिक्री के लिए एक ऐसा विज्ञापन बनाइए जिससे हस्तकला का कारोबार चले।
उत्तर : मधुबनी कला के चाहने वालों के लिए एक शानदार अवसर!
आइए इस मेले में और मधुबनी कला के सुंदर चित्र खरीदिए।
यह अवसर छूट न जाए।