अंतरा भाग -1 हरिशंकर परसाई (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए )
प्रश्न 1:लेखक ने टार्च बेचनेवाली कंपनी का नाम ‘सूरज छाप’ ही क्यों रखा?
उत्तर : साधारण-सी बात है कि इस संसार को प्रकाशित सूर्य करता है। जब सूर्य आता है, तो अंधकार भाग जाता है। अतः सूरज छाप नाम रखकर लेखक पाठकों को कंपनी के प्रति आश्वस्त करना चाहता है। टार्च भी प्रकाश करने के काम आती है। अतः यह नाम लेखक की बनाई कंपनी तथा कहानी को सार्थकता प्रदान करता है।
प्रश्न 2:पाँच साल बाद दोनों दोस्तों की मुलाकात किन परिस्थितियों में और कहाँ होती है?
उत्तर : पाँच साल बाद एक दोस्त देखता है कि मंच पर एक साधु भाषण दे रहा है। सब उसका भाषण बड़े ध्यान से सुन रहे हैं। वह लोगों को अँधकार का डर दिखाकर ज्ञान के प्रकाश में आने के लिए कहता है। उस साधु की बात सुनकर पहला मित्र हँस पड़ता है। जब वह उसके निकट जाता है, तो उसे पता चलता है कि यह तो उसका पुराना मित्र है, जिसने उसे पाँच साल बाद मिलने का वादा किया था। इस प्रकार अचानक दोनों एक-दूसरे से मंच पर मिलते हैं। एक साधु बना होता है और दूसरा टार्च बेचने वाला।
प्रश्न 3:पहला दोस्त मंच पर किस रूप में था और वह किस अँधेरे को दूर करने के लिए टार्च बेच रहा था?
उत्तर : पहला दोस्त मंच पर साधु के रूप में विद्यमान था। वह मंच पर बैठा लोगों को प्रवचन दे रहा था। उसने रेशमी वस्त्र पहने हुए थे। चेहरे पर लंबी दाढ़ी थी। उसके बाल भी लंबे हो गए थे। इस वेश में उसका स्वरूप भव्यता को प्राप्त हो रहा था। वह लोगों को आत्मा के अँधकार को दूर करने के लिए ज्ञान रूपी टार्च को बेच रहा था।
प्रश्न 4:भव्य पुरुष ने कहा- ‘जहाँ अंधकार है वहीं प्रकाश है।’ इसका क्या तात्पर्य है?
उत्तर : इस पंक्ति का अभिप्राय है कि अंधकार और प्रकाश एक सिक्के के दो पहलू हैं। अंधकार के अस्तित्व को समाप्त करने के लिए प्रकाश का होना आवश्यक है। अंतः जहाँ अंधकार रहेगा, वहाँ प्रकाश भी विद्यमान होगा। जहाँ प्रकाश होगा, वहाँ अंधकार भी होगा। प्रकाश का महत्व भी तभी हैं, जब अंधकार है। भव्य पुरुष उस अंधकार की बात कर रहा है, जो मनुष्य के मन के भीतर विद्यमान है। इससे मनुष्य सोचने-समझने की शक्ति खो देता है। यह अंधकार दुख तथा निराशा से उपजता है। इसे ज्ञान रूपी प्रकाश से दूर किया जा सकता है।
प्रश्न 5:भीतर के अँधेरे की टार्च बेचने और ‘सूरज छाप’ टार्च बेचने के धंधे में क्या फ़र्क है? पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर : यह धंधे पाठ में देखने में एक लगते हैं परन्तु दोनों में बहुत अंतर है। एक में सामान्य अंधकार को दूर करने के लिए टार्च बेचनी थी। यह एक उपकरण है, जो कृत्रिम प्रकाश पैदा करता है। इससे लोगों की सहायता की जाती है कि वे अँधेरे में स्वयं को कष्ट पहुँचने से बचा सके। भीतर के अँधेरे की टार्च बेचने का धंधा बहुत ही अलग है। इसके अंदर मनुष्य को भीतर के अँधेरे का डर दिखाया जाता है। यह धंधा लोगों में डर फैलाता है और उनका धर्म के नाम पर शोषण किया जाता है। इनसे आम लोगों को कुछ फायदा नहीं अपितु उनका भावनात्मक शोषण होता है।
प्रश्न 6:’सवाल के पाँव ज़मीन में गहरे गड़े हैं। यह उखड़ेगा नहीं।’ इस कथन में मनुष्य की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत है और क्यों?
उत्तर : इस कथन में मनुष्य की उस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया गया है, जहाँ वह किसी समस्या पर अत्यधिक सोच-विचार करता है। वह किसी समस्या से उपजे प्रश्न को बहुत जटिल बना देता है और हल न मिलने पर हताश हो जाता है। यह उचित नहीं है। हर प्रश्न का उत्तर होता है। बस प्रयास करना चाहिए कि वह उसे सही प्रकार से हल करे। इस ओर इसलिए संकेत किया गया है ताकि उन्हें ऐसी स्थिति से अवगत करवाया जा सके।
प्रश्न 7:’व्यंग्य विधा में भाषा सबसे धारदार है।’ परसाई जी की इस रचना को आधार बनाकर इस कथन के पक्ष में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर : यह बिलकुल सत्य है कि व्यंग्य विधा में भाषा सबसे धारदार है। परसाई जी की ‘टार्च बेचनेवाले’ ऐसी ही एक रचना है। इसमें परसाई जी ने एक साधारण कहानी में दो स्थितियों में व्यंग्य का समावेश किया है। इसे पढ़कर पाठक हैरान और प्रसन्न हो जाता है। आज के समय में धर्म के नाम पर लोगों को ठगने का व्यापार हो रहा है। यह व्यापार बहुत फल-फूल भी रहा है। ऐसे में एक लेखक का कर्तव्य बनता है कि वह लोगों में इस विषय पर जागरूकता फैलाए। जागरूकता ऐसी होनी चाहिए जिसमें सच्चाई भी शामिल हो और लोगों की भावनाएँ आहत भी न हो । परसाई जी इस विधा के महारथी हैं। उन्हें एक ही बात को दो अलग-अलग लोगों के माध्यम से भाषा में ऐसा बोला है कि भाव बदलता नहीं है। बस स्थिति बदलती है। वह ऐसा धारदार हथियार बन जाता है कि लोग हैरान रह जाते हैं।
प्रश्न 8:आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) आजकल सब जगह अँधेरा छाया रहता है। रातें बेहद काली होती हैं। अपना ही हाथ नहीं सूझता।
(ख) प्रकाश बाहर नहीं है, उसे अंतर में खोजो। अंतर में बुझी उस ज्योति को जगाओ।
(ग) धंधा वही करूँगा, यानी टार्च बेचूँगा। बस कंपनी बदल रहा हूँ।
उत्तर :
(क) टार्च बेचने वाला व्यक्ति अँधेरे का उल्लेख करता है। वह अँधेरे का उल्लेख इस प्रकार करता है कि सुनने वाला अँधेरे के नाम से डर जाता है। वह कहता है कि जब अँधेरा छाता है, तो चारों ओर कालिमा छा जाती है। इस तरह चारों ओर काले रंग के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता है। इतना अँधेरा होता है कि उसमें अपना हाथ भी नहीं दिखाई देता। मनुष्य एक प्रकार से अँधा ही हो जाता है।
(ख) पहला मित्र एक साधु बन जाता है। वह लोगों को भीतर के अंधकार दूर करने और अपने अंदर प्रकाश ढूँढने के लिए कहता है। वह कहता है कि मनुष्य अपने अंदर के अँधेरे से डर जाता है और प्रकाश की तलाश में भटकता रहता है। वह कहता है कि प्रकाश हमारे अंदर ही होता है। अतः हमें चाहिए कि निराशा और दुख को हटाकार ज्ञान रूपी प्रकाश को ढूँढने की। वह ज्योति हमारे अविश्वास के कारण बुझ गई है। अतः हमें उसे जगाना चाहिए।
(ग) दूसरा मित्र लेखक को कहता है अभी तक वह गलत धंधे में अपना समय नष्ट कर रहा था। बेचेगा वह अब भी प्रकाश लेकिन यह प्रकाश उपकरण रूपी टार्च का नहीं होगा। यह लोगों को ज्ञान रूपी प्रकाश का धंधा करके बेचेगा। इस तरह वह लोगों को मूर्ख बनाकर पैसा कमाएगा।
प्रश्न 9:’पैसा कमाने की लिप्सा ने आध्यामत्मिकता को भी एक व्यापार बना दिया है।’ इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
उत्तर : आज के समय में आध्यात्मिकता पैसे कमाने का सरल मार्ग बन गया है। इसे अब तो व्यापार के रूप में लिया जाता है। लोगों के जीवन में व्याप्त अशांति को आधार बनाकर उन्हें लुटा जा रहा है। इसे ही आध्यात्मिक भ्रष्टाचार कहते हैं। आध्यात्मिक भ्रष्टाचार इन दिनों समाज में बढ़ता जा रहा है। भगवान के नाम पर धर्मगुरूओं द्वारा आम जनता की भावनाओं के साथ खेला जा रहा है। आज की भागदौड़ वाले जीवन में मनुष्य के मन में शान्ति नहीं है। वह शान्ति की तलाश में धर्म गुरूओं का सहारा लेता है। यदि कुछ को छोड़ दिया जाए, तो अधिकतर धर्म गुरूओं का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। वह जनता को केवल उनका धन लुटने के लिए प्रयोग कर रहे हैं। हर कोई धर्मगुरू बन जाता है। समाज के आगे जब इनका झूठ खुलता है, तो जनता स्वयं को ठगा-सा महसूस करती है। गुरू ईश्वर प्राप्ति का मार्ग होता है परन्तु जब गुरू ही भटका हुआ हो, तो जनता को भटकाव और धोखे के अलावा कुछ प्राप्त नहीं हो सकता है। यही आध्यात्मिक भ्रष्टाचार कहलाता है।
प्रश्न 10:समाज में फैले अंधविश्वासों का उल्लेख करते हुए एक लेख लिखिए।
उत्तर : अंधविश्वास सदियों से चला आ रहा है। यह समाज में फैला ऐसा रोग है, जिसने समाज की नींव खोखली कर दी है। अंधविश्वास किसी जाति, समुदाय या वर्ग से संबंधित नहीं है बल्कि यह समान रूप से हर किसी के अंदर विद्यमान होता है। अंधविश्वास में पड़ा हुआ मनुष्य कई बार इस प्रकार के कार्य करता है, जो हास्यापद स्थिति पैदा कर देते हैं। अंधविश्वास मनुष्य को आंतरिक स्तर पर कमज़ोर बनाता है। वह ऐसी बातों पर विश्वास करने लगता है, जिनका कोई औचित्य नहीं होता। मनुष्य इस विकार से ग्रस्त है, तो समाज का बच पाना संभव नहीं है। भारतीय समाज में तो इसकी जड़ें बहुत गहरी है। हर अच्छे-बुरे काम में अंधविश्वास की छाया दिखाई दे जाएगी। घर से निकलते हुए छींक आ जाना, बिल्ली का रास्ता काट देना, पूजा के दीए का बीच में बुझ जाना, आधी रात में कुत्ते भौंकना या उल्लू का रोना इत्यादि बातें है, जिससे लोग सदियों से डरते आ रहे हैं। भारतीय समाज को इन्हीं अंधविश्वासों ने कोसों पीछे छोड़ रखा है। ऐसा नहीं है कि अंधविश्वास बस भारतीय समाज में विद्यमान है वरन यह विदेशों में भी समान रूप से विद्यमान है। परन्तु भारतीय इनसे उभर नहीं पा रहे हैं। आज भी कितने ही शिक्षित लोग हैं, जो अंधविश्वास में पड़े हुए हैं। यही कारण है कि हमारी विकास की गति इतनी धीमी है। चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण के पीछे वैज्ञानिक कारणों को अनदेखा करके हम अंदर से भयभीत रहते हैं। भारतीय समाज को इसके प्रति संकुचित दृष्टिकोण रखने की अपेक्षा इसमें छिपे रहस्य को जानना चाहिए वरना हम पीछे ही रह जाएँगे।
प्रश्न 11:एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा हरिशंकर परसाई पर बनाई गई फ़िल्म देखिए।
उत्तर : एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा हरिशंकर परसाई पर बनी फ़िल्म बच्चों को स्वयं देखनी होगी।