वितान भाग -1 राजस्थान की रजत बूँदें (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए )
प्रश्न 1:राजस्थान में कुंई किसे कहते हैं? इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्य कुओं की गहराई और व्यास में क्या अंतर होता है?
उत्तर : छोटा कुआँ कुंई कहलाता है। इसे हम कुएँ का स्त्रीलिंग कह सकते हैं। इसकी गहराई और व्यास में अंतर होता है। कुएँ सौ-दो सौ हाथ तक खोदे जाते हैं जबकि कुंई को 60-65 हाथ नीचे तक खोदा जाता है। कुएँ का व्यास बहुत अधिक होता है। इसके विपरीत कुंईयों का व्यास बहुत ही कम होता है। इसके कम व्यास के कारण पानी को वाष्पित होने से रोका जाता है।
प्रश्न 2:दिनोदिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने में यह पाठ आपकी कैसे मदद कर सकता है तथा देश के अन्य राज्यों में इसके लिए क्या उपाय हो रहे हैं? जानें और लिखें?
उत्तर : दिनोदिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने में यह पाठ हमारी बहुत प्रकार से सहायता कर सकता है। इससे हमें पता चलता है कि प्रकृति ने पानी की रक्षा के लिए बहुत से उपाय किए हुए हैं। हमें आवश्यकता उन्हें जाने और समझने की है। अतः हमें प्रकृति के संसाधनों का गहन अध्ययन करने की आवश्यकता है। इसके लिए हमारे गाँव में बिखरे चेलवांजी जैसे विशेषज्ञों की सहायता लेने की आवश्यकता है। यह बात तो सत्य है कि हम यदि भारतवर्ष में ढूँढ़े तो हमें महत्वपूर्ण जानकारियाँ और विशेषज्ञ मिल सकते हैं। इन सबसे जानकारी एकत्र कर हम अपने देश के अन्य राज्यों में पानी की समस्या के लिए ठोस उपाय निकाल सकते हैं।
देश के अन्य राज्यों द्वारा इसके लिए निम्नलिखित उपाय हो रहे हैं-
(क) नदियों के जल का महत्व समझा रहा है और उनकी साफ-सफाई पर ध्यान दिया जा रहा है। हर राज्य इस स्तर पर कार्य करने में लगा हुआ है। वाराणसी तथा हरिद्वार में गंगा की सफाई में ध्यान दिया जा रहा है।
(ख) प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाया जा रहा है तथा इनका जीर्णोद्धार किया जा रहा है।
(ग) जल संरक्षण पर अब पुनः विचार हो रहा है। पुराने तरीकों की ओर प्रत्येक राज्य की सरकार का ध्यान गया हुआ है।
प्रश्न 3:चेजारों के साथ गाँव-समाज के व्यवहार में पहले की तुलना में आज क्या फ़र्क आया है? पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर : जो लोग कुंई खोदते हैं, उन्हें चेजारे कहा जाता है। राजस्थान के गाँवों में चेजारों को विशेष स्थान प्राप्त था। कुंई खोदने के पश्चात उन्हें गाँव वालों द्वारा बहुत मान-सम्मान दिया जाता था। कुंई खोदने के पश्चात विशेष समारोह किया जाता था। चेजारों को बहुत सम्मान दिया जाता था। वर्षभर तक उन्हें प्रत्येक त्योहार में कुछ-न-कुछ भेंट दी जाती थी। यहाँ तक की फसल में उनका एक भाग भी निकालकर दिया जाता था। आज यह सब नहीं है। अब चेजारें को मज़दूरी देने का चलन आरंभ हो गया है। मात्र मज़दूरी देकर अपना काम करवा लिया जाता है।
प्रश्न 4:निजी होते हुए भी सार्वजनकि क्षेत्र में कुंइयों पर ग्राम्य समाज का अंकुश लगा रहता है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर : कुंइयों में पानी की मात्रा कम होती है। यह वर्षा का पानी वर्षभर नमी के रूप में धरती में सुरक्षित रहता है। अतः प्रत्येक घर अपनी कुंइयों का निर्माण करवाते हैं, तो इसका अर्थ होगा जो नमी है, उसका बँटवारा। यदि प्रत्येक व्यक्ति ही अनेक कुंइयाँ बनवाने लगे, तो यह बड़ी समस्या पैदा कर सकता है। इससे नमी के हिस्सेदार बढ़ जाएँगे। बाद में झगड़े होने लगेंगे गाँव के लिए यह स्थिति सही नहीं है। अतः ग्राम्य समाज अंकुश लगाकर इस स्थिति को रोके रखता है। प्रत्येक व्यक्ति को एक या दो कुंइयाँ बनाने का अधिकार होता है। यदि वह और बनाना चाहता है, तो उसे ग्राम्य समाज की स्वीकृति लेनी पड़ती है। बिना उनकी स्वीकृति के कुंइयों का निर्माण करना असंभव है।
प्रश्न 5:कुंई निर्माण से संबंधित निम्न शब्दों के बारे में जानकारी प्राप्त करें- पालरपानी, पातालपानी, रेजाणीपानी।
उत्तर : राजस्थान में पानी के तीन रूप माने जाते हैं। पालरपानी, पातालपानी तथा रेजाणीपानी। इनके विषय में जानकारी इस प्रकार हैं-
पालरपानी- यह पानी बरसात द्वारा प्राप्त होता है। इसे नदी, तालाब तथा धरती पर देखा जा सकता है।
पातालपानी- यह पानी भूजल से मिलता है। इसके स्रोत कुएँ होते हैं। यह पीने में खारा होता है।
रेजाणीपानी- यह ऐसा पानी होता है, जो वर्षा के माध्यम से धरती से नीचे चला जाता है लेकिन किन्हीं कारणों से भूजल में मिल नहीं पाता है। इसी को रेजापानी कहते हैं। यह नाम इसे वर्षा मापने की विधि से मिला है। इस विधि को रेजा कहा जाता है। इससे धरती में समाए पानी को मापा जाता है।